जानिए महंगे पेट्रोल ,ओला या उबर आखिर कौन हैं ऑटो इंडस्ट्री का खलनायक…

देश में मंदी का दौर जारी हैं. वहीं देखा जाए तो कारोबारी दुनिया जैसे धीमी होती जा रही हैं. देखा जाये तो पेट्रोल के साथ – साथ अब सफर भी महंगा होता जा रहा हैं.बतादें कि अब उबर , ओला जैसे गाड़ियों के चार्ज बढ़ते जा रहे हैं.

 

खबरों के मुताबिक देश की सबसे तेजी से बढ़ने वाली ऑटोमोबिल इंडस्ट्री की रफ्तार पर ब्रेक लग चुका है. घरेलू मांग में गिरावट की वजह से वाहनों और खासकर यात्री वाहनों की बिक्री 19 साल के सबसे निचले स्तर तक पहुंच गई है.

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में कहा कि अब ओला, उबर की सेवाएं सस्ती होनी के कारण खासकर युवा लोग कार नहीं खरीदना चाह रहे. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के एक रिसर्च से यह बात सामने आई है कि कारों की बिक्री में गिरावट की सबसे बड़ी वजह पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार हो रहा इजाफा है.

वहीं RBI ने अपने एक रिसर्च पेपर में कहा है, ‘हमने यह पाया कि मैक्रो लेवल पर, ईंधन कीमतों में बदलाव से ऑटोमोबाइल सेल्स पर नेगेटिव असर पड़ा है, और इसमें कर्ज (लोन मिलने में दिक्कत) का कोई बड़ा असर नहीं दिखता. अपने विश्लेषण के आधार पर हमने यह पाया कि हाल की सुस्ती को ऊंची ईंधन कीमतों के आधार पर बेहतर समझा जा सकता है.’

वैसे यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में ओला, उबर जैसी किफायती टैक्सी एग्रीगेटर सेवाओं का पूरे देश के कई शहरों में जबरदस्त ग्रोथ हुआ है. इन सेवाओं के विस्तार की वजह से ही शुरुआती कई वर्षों में टैक्सी रजिस्ट्रेशन में काफी बढ़त हुई. लेकिन साल 2016 से टैक्सी रजिस्ट्रेशन में आंशिक तौर पर गिरावट देखी जाने लगी, इसकी वजह यह हो सकती है कि इन सेवाओं में परिपक्वता आने लगी और टैक्सी आपूर्ति में परिपूर्णता आ गई.

दरअसल सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबिल मैन्युफैक्चररर्स (SIAM) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दो साल में यात्री कारों की मांग में करीब एक-तिहाई की गिरावट आ चुकी है. पिछले पांच साल (वित्त वर्ष 2013-14 से वित्त वर्ष 2018-19) में यात्री कारों की घरेलू बिक्री में औसतन सालाना ग्रोथ महज सात फीसदी रही है. इस मामले में साल 2017-18 एक अपवाद रहा है, जब वाहनों की बिक्री में 14 फीसदी की बढ़त हुई थी.

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