जानिए भारतीय सिनेमा का राष्ट्रीय संग्रहालय के बारे , ऐसे हुई सिनेमा की शुरुआत…

बॉलीवुड फिल्मों का हर कोई दीवाना होता हैं। वहीं देखा जाए तो भारतीय सिनेमा में राष्ट्रिय संग्रहालय के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। जहां भारतीय सिनेमा में सिर्फ ब्लैक एंड व्हाइट सहित मूक फिल्मों से सिनेमा तक 100 साल पुरे हो चुके हैं।

वर्ष 1913 में दादासाहब फाल्के ने भारतीय सिनेमा की पहली मूक फिल्म राजा हरिश्चचंद्र का निर्माण किया था। इस फिल्म के साथ ही भारत में मूक सिनेमा का दौर शुरू हो गया। पुराने फिल्मकारों की तस्वीरों के माध्यम से संग्रहालय में बड़ी खूबसूरती से मूक चलचित्र युग के प्रवर्तकों का ब्यौरा दिया गया है। राजा हरिश्चंद्र के बाद से सम्पूर्ण भारत में सिनेमा का विस्तार होता गया। संग्रहालय में सिनेमा जगत के शुरुआती नायक और नायिकाओं का भी वर्णन मिलता है।

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दरअसल प्रारंभिक भारतीय फिल्मों को औपनिवेशिक प्रतिक्रिया और अंतराष्ट्रीय सहयोग को भी बड़ी खूबी से दिखाया गया है। मूक सिनेमा के बाद भारत में आवाज वाली फिल्मों का आगमन हुआ। संग्रहालय में हमें आगे देखने को मिलता है कि किस तरह रिकॉर्डर के सहारे विश्व सिनेमा में ध्वनि प्रस्तुत करने का प्रारंभिक प्रयास किया गया।

लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा में ऐतिहासिक परिवर्तन नजर आने लगे भारत की पहली आवाज वाली फिल्म आलम आरा थी जिसका पूरे देश पर प्रभाव पड़ा। धीरे- धीरे पूरे देश में टॉकीज का प्रसार होता गया और देश भर में अनेक भाषाओं में टॉकीज की शुरुआत हुई वहीं दूसरी तरफ भारतीय सिनेमा में पार्श्वगीत का भी उदय हो गया।

जहां गुलशन महल की पहली मंजिल पर क्षेत्रीय सिनेमा का इतिहास है। जिनमें मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, बांग्ला और ओड़िया सिनेमा की यादे हैं। इसके साथ ही आगे बढ़ने पर हम भारतीय सिनेमा के बदलते परिदृश्य और नवीन धाराओं से रूबरू हुए।

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