हिन्दू रीति – रिवाज के अनुसार शादी के बाद कोई भी पूजा में पति – पत्नी एक साथ जोड़े से ही पूजा कर सकते हैं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा की ये ऐसा आखिर क्यों होता हैं। वहीं पूर्वजों का मानना हैं की अगर दम्पति साथ में बैठकर पूजा नहीं करते हैं तो उस पूजा का कोई महत्त्व नहीं रहता हैं।
वहीं कई मान्यताओं के अनुसार पति-पत्नी दोनों को साथ में पूजा करनी चाहिए। अगर पति-पत्नी एकसाथ पूजा अर्चना नहीं करते हैं, तो उस पूजा का महत्व कम हो जाता है। सिर्फ पूजा-पाठ ही नहीं बल्कि पति-पत्नी को को एकसाथ तीर्थ यात्रा भी करनी चाहिए। ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और दंपत्ति जीवन भी सुखमय रहता है। एकसाथ पूजा-पाठ करने से दंपत्ति को कई लाभ प्राप्त होते हैं। आइए जानते क्यों पति-पत्नी को एक-साथ पूजा करनी चाहिए।
देखा जाए तो शादी के सात वचनों में से एक वचन यह होता है कि यदि आप शादी के बाद कोई व्रत-उपवास और किसी धार्मिक स्थान पर जाएं तो आप मुझे भी अपने साथ लेकर जाएं। इसलिए पति-पत्नी की अकेले पूजा नहीं करनी चाहिए। अकेले पूजा करने से पूजा का महत्व कम हो जाता है। इसके अतिरिक्त किसी तीर्थ स्थान पर अकेले जाने नहीं जाना चाहिए , ऐसा कहा जाता है कि इससे तीर्थ यात्रा सफल नहीं होती है।
अगर पति-पत्नी एक साथ पूजा करते हैं तो उन दोनों में आपसी तालमेल बढ़ता है। एक साथ पूजा-पाठ करने और तीर्थ स्थल पर एक साथ जाने से वाद-विवाद और कलह कम हो जाता है। इसके अतिरिक्त धार्मिक कार्य एकसाथ करने से पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति समर्पण भाव की उत्पत्ति होती है।
दरअसल अगर आप पुराणों में भी देखे तो आपको पता चलेगा कि देवताओं के नाम से पहले उनकी शक्ति का नाम लिया जाता है। जैसे राधाकृष्ण , सीताराम। यही कारण है कि पत्नी के बिना पति द्वारा किए गए धार्मिक कार्यों को अधूरा माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि अकेले पूजा करने से मनोकामना पूरी नहीं होती है।मनचाहे फल की प्राप्ति भी नहीं होती है।इसलिए पति-पत्नी को एक-साथ पूजा करनी चाहिए।