
अगस्त 2018 में बैंकूवर द्वीप के तट के करीब शिकारी व्हेल के एक बच्चे की मौत हो गई। उसकी मां (तहलका) 17 दिनों तक बच्चे का शव अपने पास रखी रही।

बता दें की दो साल पहले ज़ांबिया के चिम्फुंशी वन्यजीव अनाथालय ट्रस्ट में नोएल नाम की मादा चिंपाजी अपने बच्चे थॉमस के शव के दांत साफ करने की कोशिश करते हुए देखी गई थी। हाथी अपने परिवार के सदस्यों के अंतिम अवशेष तक बार-बार आते हैं और हड्डियों को उलट-पलटकर देखते हैं।
जहां इन सबसे ज़्यादा नाटकीय घटना 1972 की है। फ़्लिंट नाम का एक युवा चिंपाजी अपनी मां फ़्लो के निधन से इतना दुखी हुआ कि उसने खाना-पीना और समूह में मिलना-जुलना बंद कर दिया। वह बच नहीं पाया।
मां की मौत के एक महीने बाद ही वह भी चल बसा। शोक में अपनी जान दे देना मुमकिन हो या न हो, मगर एक बात तय है। जैसा कि डॉ. बारबरा जे किंग कहती हैं, “प्यार करना और शोक मनाना इंसानों तक सीमित नहीं है। ये भावनाएं जानवरों में भी होती हैं।
इन सबसे ज़्यादा नाटकीय घटना 1972 की है। फ़्लिंट नाम का एक युवा चिंपाजी अपनी मां फ़्लो के निधन से इतना दुखी हुआ कि उसने खाना-पीना और समूह में मिलना-जुलना बंद कर दिया। वह बच नहीं पाया। मां की मौत के एक महीने बाद ही वह भी चल बसा। शोक में अपनी जान दे देना मुमकिन हो या न हो, मगर एक बात तय है। जैसा कि डॉ. बारबरा जे किंग कहती हैं, “प्यार करना और शोक मनाना इंसानों तक सीमित नहीं है। ये भावनाएं जानवरों में भी होती हैं।
लेकिन रिसर्च के दौरान डॉ. किंग ने महसूस किया कि हम इंसान किसी जानवर में मानवीय लक्षण और भावनाएं होना स्वीकार नहीं करते। इसलिए उन्होंने एक मापदंड बनाया।
यदि मृत जानवर का कोई करीबी संबंधी समाज से खुद को काट ले, खाना-पीना और सोना छोड़ दे, कहीं आना-जाना बंद कर दे और अपनी प्रजाति के अनुसार भावनाएं जाहिर करे तो इसे हम जानवरों में मृत्यु के प्रति भावनात्मक प्रतिक्रिया का व्यापक सबूत मान सकते हैं।
दरअसल जहां पिछले दशक में जानवरों में दुख और शोक के वैज्ञानिक सबूतों में इतनी बढ़ोतरी हुई है कि रॉयल बी के जर्नल फिलोसॉफिकल ट्रांजैक्शंस ने इस पर अपना पूरा एक अंक निकाला और अध्ययन के एक नये क्षेत्र “इवॉल्यूशनरी थेनेटोलॉजी” को परिभाषित करने का प्रस्ताव भी रखा।
वहीं इसका अंतिम लक्ष्य पशु साम्राज्य और मानवीय संस्कृति के व्यवहारों को सूचीबद्ध करना ही नहीं है, बल्कि मृत्यु के सभी पहलुओं के बारे में अधिक स्पष्ट विकासवादी विचार विकसित करना है। जीव विज्ञान के बारे में कहा जाता है कि इसमें अगर क्रमिक विकास की बातें न हो तो पूरा विषय ही बेमतलब है। सवाल यह है कि शोक आखिर होना ही क्यों चाहिए?
https://www.youtube.com/watch?v=UYCamRUMnBI