देखा जाये तोउनकी बनाई गुड़ाई बिलकुल वैसी ही दिखती हैं, जैसा बच्चा दिखता है। एमी का कहना है कि गंभीर बीमारी से पीड़ित बच्चे जब खुद के जैसी गुड़िया पाते हैं तो उन्हें खुशी मिलती है और उनका अकेलापन भी दूर हो जाता है। एक मेडिकल सामाजिक कार्यकर्ता एमी कैंसर से पीड़ित बच्चों के प्ले थैरेपी सेंटर में भी काम करती हैं। उनका कहना है कि उन्होंने कैंसर से पीड़ित बच्चों और उनके माता-पिता का दर्द करीब से देखा है। एमी कैंसर पीड़ित बच्चों के अलावा दिव्यांग बच्चों के लिए भी गुड़िया बनाती हैं। क्योंकि बच्चे खुद को इन गुड़िया से जोड़ पाते हैं। एमी का कहना है कि इसलिए उन्होंने ‘ए डॉल लाइक मी’ अभियान शुरू किया हैं।
वह कहती हैं कि कुछ सालों तक कैंसर से पीड़ित लड़कियों को उनके जैसी गुड़िया दिखाकर थैरेपी कराई गई, तो पता चला कि उनकी सकारात्मक भावनाओं में इजाफा हुआ है। ऐसे बच्चों का खुश रहना बेहद जरूरी है। क्योंकि कैंसर के इलाज के दौरान बच्चों के पास कोई खिलौना नहीं होता। उनके बाल झड़ने लगते हैं। ऐसे में अगर उन्हें सामान्य गुड़िया दी जाएं तो इससे उनमें हीन भावना पनपने लगती है। लेकिन अगर उन्हें उनके जैसी गुड़िया दी जाए तो वो थैरेपी का काम करती है।
दरअसल तीन बच्चों की मां एमी का कहना है कि उन्होंने चार सालों में 300 गुड़िया बनाई हैं। मां होने के नाते उनके पास गुड़िया बनाने के लिए अधिक समय नहीं होता है। जिसके कारण कई बच्चों और उनके माता-पिता को इसके लिए इंतजार करना पड़ता है। एमी एक गुड़िया की कीमत छह से सात हजार रुपये लेती हैं। लेकिन जो माता-पिता अपने बच्चों के लिए गुड़िया बनवाने में असमर्थ होते हैं, उनके लिए एमी फंड जुटाती हैं।
एमी का कहना है कि वह इस अभियान के लिए चर्च, समूहों और लोगों से पैसे दान करने को कहती हैं। अभी तक वह साढ़े तीन लाख रुपये जुटा चुकी हैं। एमी कहती हैं कि उनकी बनी गुड़िया पाने के बाद बच्चे बहुत खुश होते हैं, उनके माता-पिता फिर इसका वीडियो उनके साथ शेयर करते हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=wFcVo_SSQ3E