प्रेरक-प्रसंग : जादूगर बना संत

संत अबू हफस हदद बेनागा इबादत करते थे। एक दिन जादूगर के करतबों से आकर्षित होकर उन्होंने उससे जादू सीखने की जिद की। जादूगर ने उनसे पूछा कि क्या वह अल्लाह की इबादत करते हैं। उनके द्वारा हां कहने पर जादूगर बोला, ‘देखो जी जादू और इबादत का मेल नहीं बैठता है। अगर जादू सीखना है तो इबादत बंद करना होगी। जादू सीखने की ठान ही ली है तो चालीस दिन तक इबादत मत करो और फिर मेरे पास आओ।’

जादूगर बना संत
संत अबू ने निश्चय कर लिया था कि जादू सीखना है इसलिए जादूगर के कहे मुताबिक उन्होंने 40 दिनों तक इबादत बिल्कुल नहीं की और उसके बाद जादूगर के पास गए। जादूगर उनको करतब सीखा रहा था, लेकिन वह उनको सीख नहीं पा रहे थे।

तब जादूगर ने उनसे कहा, ‘शायद तुमने मेरा कहना नहीं माना और इस दौरान इबादत करते रहे।’ अबू द्वारा इंकार करने पर जादूगर बोला, ‘फिर तुमने जरूर कोई नेक काम किया होगा।’ संत ने पहले तो ना किया फिर उनको याद आया और वो बोले, ‘हां’ जब मैं इधर आ रहा था तो रास्ते में मुझे बहुत से पत्थर पड़े मिले। मैने सोचा किसी को ठोकर लग सकती है इसलिए उनको सड़क से उठाकर एक तरफ कर दिया था। शायद यही नेक काम हो सकता है।’

जादूगर ने सुना तो हंसकर बोला ‘तुम कितने मूर्ख हो जिस खुदा ने जन्म दिया उसको ही भूल गए। जिसकी तुम रोज इबादत करते थे, केवल इल्म सीखने के लिए तुमने उससे मुंह फेर लिया और अब वह भी हासिल करना चाहते हो। अरे सबसे बढ़ा जादूगर तो वही है। उसके आगे सारे जादू बेअसर हो जाते हैं।’ इन शब्दों ने अबू पर असर किया। उन्हे खेद हुआ कि उन्होंने सचमुच तुच्छ जादू के लिए खुद को भुलाने की चेष्टा की। उन्होंने कसम खाई कि उससे अब कभी मुंह नही मोड़ेंगे।

 

 

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