दीपिका, प्रियंका, कटरीना, करीना… ये सब हैं विलेन

जया बच्चनमुंबई| दिग्गज एक्ट्रेस जया बच्चन का कहना है कि एक समय था जब भारतीय फिल्म निर्माता फिल्मों के जरिए कला को बढ़ावा देते थे, लेकिन अब फिल्में आंकड़े और व्यवसाय तक सिमट कर रह गई हैं।

जियो मामी 18वें मुंबई फिल्म महोत्सव के एक सत्र में मंगलवार को बिमल रॉय की सराहना करते हुए जया ने 1950 और 1960 के दशक की फिल्मों की तुलना आज के दौर की फिल्मों से की।

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जया बच्चन की फिल्में

‘गुड्डी’, ‘अभिमान’, और ‘सिलसिला’, जैसी फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री (68) ने कहा, “उस समय के फिल्मकार कला की रचना करते थे। अब यह व्यापार और आंकड़े के बारे में है। हमें कुछ भी दिखाया जा रहा है। लोग विलक्षणता भूल गए हैं। प्रेम के खुलेआम प्रदर्शन को स्मार्ट माना जाता है। शर्म नाम की चीज नहीं है। अब यह बॉक्स ऑफिस की कमाई, 100 करोड़ की फिल्म, पहले हफ्ते की कमाई से जोड़ कर देखी जाती है। मेरे लिए यह सब अजीब है।”

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उनका मानना है कि अधिकांश चरित्र पश्चिम से प्रभावित होते हैं। अभिनेत्री का कहना है कि ‘मसान’ या ‘अलीगढ़’ जैसी कुछ फिल्में वास्तविक भारत और देश की वास्तविक समस्याओं को दिखाती हैं।

जया ने इस बात पर जोर दिया कि भावनाओं और संदेश को सहज तरीके भी दिखाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आजकल कि फिल्मों को देखकर वह परेशान हो जाती है।

जया बच्चन और बिमल रॉय

बिमल रॉय के बेटे जॉय रॉय भी इस महोत्सव में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि आज की फिल्मों में खलनायिका और नायिका के बीच कोई अंतर नहीं रह गया है, क्योंकि आजकल की नायिकाएं खलनायिकाओं की तरह कपड़े पहनती हैं। आयटम सांग पर नाचती हैं। जॉय के मुताबिक, क्षेत्रीय सिनेमा ही भारत की सच्चाई को दर्शाती है।

जाने-माने पटकथा लेखक अपूर्व असरानी ने कहा कि दर्शकों को भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उनके मुताबिक, समीक्षकों द्वारा सराही गई चैतन्य तम्हाणे की मराठी फिल्म ‘कोर्ट’ ऑस्कर के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि रही, लेकिन इसे ज्यादा दर्शक नहीं मिले।

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