जानिए ‘जगन्नाथ पुरी’ में भगवान की मूर्तियां क्यों रह गई अधूरी

भारत के चार धामों में से एक है जगन्नाथ पुरी। कहते हैं कि यहां तीनों धामों के दर्शन करने के पश्चात् अंत में आना चाहिए। उड़ीसा राज्य में स्थित पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है, जो जग के स्वामी भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। जगन्नाथ पुरी को धरती का वैकुंठ कहा गया है। इस स्थान को शाकक्षेत्र, नीलांचल और नीलगिरि भी कहते हैं। पुराणों के अनुसार पुरी में भगवान कृष्ण ने अनेकों लीलाएं की थीं और नीलमाधव के रूप में यहां अवतरित हुए।उड़ीसा स्थित यह धाम भी द्वारका की तरह ही समुद्र तट पर स्थित है।

जानिए जगन्नाथ धाम में भगवान की मूर्तियां क्यों रह गई अधूरी

जगत के नाथ यहां अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। तीनों ही देव प्रतिमाएं काष्ठ की बनी हुई हैं। हर बारह वर्ष बाद इन मूर्तियों को बदले जाने का विधान है। पवित्र वृक्ष की लकड़ियों से पुनः मूर्तियों की प्रतिकृति बना कर फिर से उन्हें एक बड़े आयोजन के साथ प्रतिष्ठित किया जाता है। वेदों के अनुसार भगवान हलधर ऋग्वेद स्वरुप हैं। श्री हरि (नृसिंह) सामवेद स्वरुप हैं। सुभद्रा देवी यजुर्वेद की मूर्ति हैं और सुदर्शन चक्र अथर्ववेद का स्वरुप माना गया है। यहां श्री हरी दारुमय रूप में विराजमान हैं।

बच्‍चों के शारीरिक विकास और आंतों के लिए बेहद फायदेमंद है बकरी का दूध

वर्तमान मंदिर का निर्माण कार्य कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंगदेव ने आरम्भ कराया था।1197 में ओड़िया शासक अनंगभीमदेव ने इस मंदिर को वर्तमान रूप दिया था। मंदिर के गर्भगृह में प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां एक रत्नमंडित पाषाण चबूतरे पर गर्भगृह में स्थापित हैं। माना जाता है कि इन मूर्तियों की पूजा-अर्चना मंदिर निर्माण से कहीं पहले से की जाती रही है। कलिंग शैली में बना यह मंदिर, भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक माना जाता है।

श्री जगन्नाथ का मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है इसके शिखर पर अष्टधातु से निर्मित विष्णु जी का सुदर्शन चक्र लगा हुआ है, जिसे नीलचक्र भी कहते हैं। मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं के भी कई मंदिर हैं, जिनमें से मां विमला देवी शक्तिपीठ भी शामिल है। जगन्नाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंह लगे हुए हैं। दर्शन के लिए पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में चार द्वार हैं, जिनसे होकर श्रद्धालु दर्शन के लिए प्रवेश करते हैं। चारों प्रवेश द्वारों पर हनुमान जी विराजमान हैं, जो कि श्री जगन्नाथ जी के मंदिर की सदैव रक्षा करते हैं।

शास्त्रों के अनुसार विश्वकर्मा (बूढ़े बढ़ई के रूप में) जब मूर्ति बना रहे थे, तब राजा इंद्रदयुम्न के सामने शर्त रखी कि वे दरवाज़ा बंद करके मूर्ति बनाएंगे और जब तक मूर्तियां नहीं बन जातीं तब तक अंदर कोई प्रवेश नहीं करेगा। यदि दरवाज़ा पहले खुल गया तो वे मूर्ति बनाना छोड़ देंगे। बंद दरवाज़े के अंदर मूर्ति निर्माण का काम हो रहा है या नहीं, यह जानने के लिए राजा नित्यप्रति दरवाज़े के बाहर खड़े होकर मूर्ति बनने की आवाज़ सुनते थे।

एक दिन राजा को अंदर से कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी तो उनको लगा कि विश्वकर्मा काम छोड़कर चले गए हैं। राजा ने दरवाज़ा खोल दिया और शर्त अनुसार विश्वकर्मा वहां से गायब हो गए। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी ही रह गईं। उसी दिन से आज तक मूर्तियां इसी रूप में यहां विराजमान हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार जब श्री कृष्ण की लीला अवधि पूर्ण हुई तो वे देह त्यागकर वैकुंठ चले गए। उनके पार्थिव शरीर का पांडवों ने दाह संस्कार किया, लेकिन इस दौरान उनका दिल जलता ही रहा। पांडवों ने उनके जलते हुए दिल को जल में प्रवाहित कर दिया। तब यह दिल लट्ठे के रूप में परिवर्तित हो गया। यह लट्ठा राजा इंद्रदयुम्न को मिल गया और उन्होंने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर इसे स्थापित कर दिया, तब से वह यहीं है।

जानें क्यों कहा जाता है ‘An apple in a day, keeps the doctor away’

मंदिर में प्रवेश से पहले दाईं तरफ आनंद बाज़ार और बाईं तरफ महाप्रभु श्री जगन्नाथ मंदिर की पवित्र और विशाल रसोई है। इस रसोई में प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है, पर आश्चर्य की बात यह है कि इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है। मंदिर के इस प्रसाद को रोज़ाना करीब 25,000 से ज़्यादा भक्त ग्रहण करते हैं। विशेष बात तो यह है कि यहां न तो प्रसाद बचता है और न ही कभी कम पड़ता है।

LIVE TV