चीन: मुसलमानों की नजरबंदी पर खुद को बचाने की कोशिश कर रहा !

चीन के शिनजियांग में सुदूर पश्चिम क्षेत्र में स्थित शू ले काउंटी एजुकेशन सेंटर में एक विशाल तीन मंजिला इमारत है। इस इमारत की खिड़कियों पर अवरोध लगे हैं और दरवाजे ऐसे हैं जिन पर सिर्फ बाहर से ताला लगाया जा सकता है। इस इमारत के अंदर सैकड़ों अल्पसंख्यक उइगर मुसलमान हैं, जो बिना किसी सरकारी अनुरक्षण के इमारत से बाहर नहीं निकल सकते।

इस सप्ताह चीनी अधिकारी कुछ विदेशी पत्रकारों के एक समूह को ‘शिक्षा के माध्यम से परिवर्तन’ कहलाए जा रहे इस कैंप के आसपास ले गए थे और उनका कहना था कि सभी उइगर मुसलमान स्वेच्छा से यहां थे। हालांकि, इस सवाल पर कि यदि कोई उइगर मुस्लिम इस शिविर को छोड़ना चाहे तो क्या होगा, शू ले की प्रधानाचार्य ममात अली ने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ देर की खामोशी के बाद अली ने कहा, ‘यदि वह नहीं आना चाहते तो उन्हें न्यायिक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ेगा।’ उन्होंने कहा कि शिविर में कई लोग ऐसे हैं जो सात महीनों तक यहां रुके।

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शू ले शिनजियांग में स्थित अनगिनत पुनर्शिक्षण शिविरों में से एक है। शिनजियांग एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और यह राष्ट्रपति शी जिनपिंग की एशिया को यूरोप से जोड़ने वाली बेल्ट एवं रोड पहल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अमेरिकी विदेश विभाग का कहना है कि इन शिविरों में 20 लाख से ज्यादा उइगर मुसलमान कैद हैं। हालांकि चीन इस संख्या को स्वीकार नहीं करता है, लेकिन उसने एक स्पष्ट आधिकारिक संख्या भी नहीं बताई है।

शी की नीतियां बनीं चुनौती

अंग्रेजी समाचार वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित समाचार के अनुसार पांच विदेशी मीडिया संस्थानों के पत्रकारों ने चीनी सरकार द्वारा शिनजियांग के तीन शहरों में आयोजित एक यात्रा कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस यात्रा कार्यक्रम से प्रतीत होता है कि अमेरिका-चीन संबंधों की वजह से अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी छवि को लेकर बीजिंग और चिंतित हुआ है। चीन की हरकतों को देखते हुए मुस्लिम देश अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) से जुड़ रहे हैं। बता दें कि तुर्की के विदेश मंत्री ने फरवरी में इन शिविरों को ‘मानवता के लिए बड़ी शर्मिंदगी’ कहा था।

 

तीन दशक पहले तियानांमेन स्क्वायर में विरोध प्रदर्शनों को शांत करने के लिए सैनिक भेजे गए थे। तब से स्थानीय आबादी को शांत रखने के लिए शी जिनपिंग की नीतियों ने चीन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौती सी दे दी है। पहले इन शिविरों के अस्तित्व को ही अस्वीकार करने वाला चीन अब इनकी संख्या बढ़ा रहा है और आतंकवाद के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण हथियार कहकर इनका बचाव भी कर रहा है। ह्यूमन राइट्स वॉच की वरिष्ठ शोधकर्ता माया वांद कहती हैं, ‘आप देख सकते हैं कि चीनी सरकार ने समय के साथ अपनी स्थिति में बदलाव किया है, वह इनकार से हटकर अब पूरी तरह से आक्रामक हो गई है।’

चीन का आरोप, विदेश मीडिया ने पेश की गलत तस्वीर

यात्रा के दौरान चीनी अधिकारियों ने कहा कि विदेशी मीडिया ने सरकार के शिनजियांग में किए जा रहे प्रयासों की गलत छवि पेश की है। यात्रा के दौरान अधिकतर समय आर्थिक विकास और नई शैक्षिक पहलों पर ही केंद्रित रहा। सरकार का संदेश आसान था- शी की नीतियां इस क्षेत्र को शांत करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मदद कर रही थीं।

 

यह कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शी जिनपिंग के बढ़ते विश्वास को भी परिलक्षित कर रहा था, जहां उन्होंने सरकार के एक केंद्रीय मॉडल, जो सजा देने के लिए, सम्मानित कने के लिए और नागरिकों के आचरण को नियंत्रित करने के लिए एडवांस तकनीक का प्रयोग करती है, पश्चिमी पद्धति की लोकतांत्रिक व्यवस्था को सीधे चुनौती दी है।

 

यात्रा में शामिल रहे पीटर मार्टिन कहते हैं कि यात्रा के दौरान वह किसी नागरिक से स्वतंत्रतापूर्वक बात नहीं कर सके और न ही उन्हें कहीं अकेले जाने दिया गया। हालांकि, समूह को अधिकारियों से सवाल पूछने की इजाजत थी। विदेशी पत्रकारों का कहना है कि तीन में रिपोर्टिंग करना और मुश्किल होता जा रहा है।

 

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