खुल गया राज इस वजह से श्मशान में जाकर भी जिंदा हो जाते हैं लोग, जिसे जानकर उड़ जायेंगे होश…

आपने कई बार पढ़ा होगा कि किसी मृत लाश को ज्योही श्मशान अथवा कब्रिस्तान में ले जाकर अंतिम संस्कार करने लगे वह उठकर जिंदा हो गई और सामान्य आदमी की तरह बात करने लगी। कुछ लोग इसे चमत्कार मानते हैं तो कुछ लोग इसे भूत-प्रेतों का असर मानते हैं।

वहीं कुछ लोग इसे यमराज तथा व्यक्ति के भाग्य से भी जोड़ते हैं कि उस आदमी की पृथ्वी पर समय पूरा नहीं हुआ था इसलिए उसे यमराज ने वापस भेज दिया।

खुल गया राज इस वजह से श्मशान में जाकर भी जिंदा हो जाते हैं लोग
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा लेकिन सच यही है कि आधुनिक विज्ञान के डॉक्टर भी इस बात को मानने लगे हैं। उनके मुताबिक श्मशान की एक खास वजह से ऐसा होता है।

महान पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी मोहम्मद हनीफ के क्लीनिकली मौत हो जाने के छह मिनट के अंदर उन्हें दोबारा होश में लाया गया, लेकिन उम्र से जुड़ी समस्याओं की वजह से उन्हें बचाया नहीं जा सका। उन्हें सीपीआर के जरिए दोबारा जिंदा किया गया था।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मानद महासचिव पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि 40 प्रतिशत अकस्माक कार्डियक के मामलों में सीपीआर-10 के जरिए पीडि़त को होश में लाया जा सकता है और बिजली के झटके वाली मशीन के जरिए इसे 60 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि अकस्मात दिल का दौरा पड़ने से देश भर में हर साल लगभग 25 लाख लोगों की मौत होती है।

उन्होंने बताया कि अचानक आने वाले हार्ट अटैक से बचने के लिए हर आदमी को हैंड्स ओनली सीपीआर-10 तकनीक सीखनी चाहिए।

यह सीखने में बहुत आसान होती है और सरल हैंड्स ओनली सीपीआर-10 में मुंह से मुंह में सांस देने की जरूरत नहीं होती।

ये रखें सावधानी
डॉक्टरों के अनुसार जैसे ही दिल का दौरा पड़े, पीडित व्यक्ति के पास खड़े किसी आदमी को तुरंत उसकी छाती को दबाना शुरु कर देना चाहिए।

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इस दौरान 10 मिनट के अंदर कम से कम 10 मिनट के लिए छाती के बीचों बीच 10 गुना 10 यानी 100 बार प्रति मिनट की रफ्तार से दबाते रहें।

लोगों को सब्र रखना चाहिए और छाती दबाना तब तक रोकना नहीं चाहिए, जब तक सामने वाला होश में न आ जाए।

ऐसा करना तभी बंद करें जब मरीज खुद सांस लेने लगे या एंबुलेंस आ जाए। शुरुआती कुछ सैंकड में ही इस तकनीक के इस्तेमाल से 90 फीसदी मरीजों को बचाया जा सकता है।

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