क्या सुभाष चंद्र बोस का खजाना लूटने वाले को नेहरू ने दिया था इनाम, देखें क्या है सच्चाई

नई दिल्ली। केंद्र में बीजेपी सरकार बनने के दो साल बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर 100 फाइलों को सार्वजनिक किया गया था। इसमें कई ऐसे राज भी सामने आएं जो बेहद चौंकाने वाले थे। इन फाइलों से एक सच का पता चलता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के खजाने को लूटा गया था।

सुभाष चंद्र बोस

1951 से 1955 के बीच जापान और नई दिल्‍ली के बीच हुई बातचीत के दस्‍तावेजों से इस बात का खुलासा हुआ है। इनसे यह भी पता चलता है तत्‍कालीन नेहरु सरकार को इस बात का पता भी था।

सार्वजनिक की गई फाइलों में में से एक फाइल नंबर- 25/4//NGO-Vol 3 में नेताजी के खजाने का जिक्र है। इन टॉप सीक्रेट फाइल्स के मुताबिक, खजाने से सात लाख डॉलर की लूट हुई थी। इस बात का पहली बार जिक्र रिसर्चर अनुज धर ने अपनी किताब इंडियाज बिगेस्ट कवरअप में भी किया था।

नेशनल आर्काइव की गोपनीय फाइलों से पता चलता है कि सरकारी अधिकारियों को नेता जी के दो पूर्व सहयोगियों पर शक था। उनमें से एक सहयोगी को सम्मान भी दिया गया और नेहरू की पंचवर्षीय योजना कार्यक्रम का पब्लिसिटी एडवाइजर भी बनाया गया।

21 मई, 1951 को टोक्यो मिशन के हेड के. के. चित्तूर ने राष्ट्रमंडल मामलों के सचिव बी. एन. भट्टाचार्य को सुभाष चंद्र बोस के दो सहयोगियों- प्रॉपेगैंडा मिनिस्टर एस. ए. अय्यर और टोक्यो में आजाद हिंद फौज के हेड मुंगा रामामूर्ति के बारे में संदेह जाहिर करते हुए लिखा, जैसा कि आपको बेशक पता होगा, इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के फंड के बेजा इस्तेमाल को लेकर रामामूर्ति के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। इसमें स्वर्गीय सुभाष चंद्र बोस की निजी संपत्ति भी शामिल है, इसमें ब़डी मात्रा में हीरे, ज्‍वैलरी, सोना और अन्य कीमती सामान है। यह सही हो या गलत लेकिन अय्यर का नाम भी इन आरोपों से जोडा जा रहा है।

के. के. चित्तूर ने 20 अक्टूबर, 1951 को जापानी सरकार द्वारा मिशन को दी गई गोपनीय जानकारी के हवाले से लिखा कि बोस के पास ब़डी मात्रा में गोल्ड ज्‍वैलरी और कीमती रत्न थे लेकिन उस दुर्भाग्यपूर्ण फ्लाइट में उन्हें केवल दो सूटकेस के साथ यात्रा करने की इजाजत दी गई।

टोक्यो मिशन के हेड की रिपोर्ट में लिखा गया है कि रामामूर्ति और अय्यर ने जो चीजें हमें सुपुर्द की हैं, बोस के पास यकीनन उससे बहुत ज्यादा होगा। यहां तक कि विमान हादसे से खजाने को हुए नुकसान के लिए मुआवजे से भी ज्यादा रहा होगा। रिपोर्ट कहती है कि नेता जी का खजाना उनके अपने वजन से भी ज्यादा था।

रिपोर्ट में एक ऐसे व्यक्ति का भी जिक्र है, जिसने अय्यर के कमरे में नेता जी के खजाने का बक्सा देखा था और जिसे बक्से से कुछ चीजें खरीदनी भी थीं। लेकिन इसके बाद इन बक्सों का क्या हुआ, यह भी एक रहस्य ही है क्योंकि हमें अय्यर से 300 ग्राम सोना और 260 रूपये नकद मिला। एक नवंबर, 1955 को इस बारे में एक और गोपनीय रिपोर्ट विदेश मंत्रालय ने प्रधानमंत्री के लिए तैयार की। प्रधानमंत्री को इस मामले की हर बात शुरू से पता थी।

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रिपोर्ट का टाइटल था, आजाद हिंद का खजाना और मेसर्स अय्यर और रामामूर्ति द्वारा इसका इस्तेमाल। रिपोर्ट लिखने वाले आर. डी. साठे ने इस बात की पुष्टि की, जापान में अय्यर की गतिविधियां संदिग्ध थीं। साठे के लिखे नोट पर प्रधानमंत्री के दस्तखत थे और पांच नवंबर, 1951 की तारीख दर्ज है और विदेश सचिव की नोटिंग दर्ज है।

प्रधानमंत्री ने नोट देखा है। रामामूर्ति जापान में फलते-फूलते रहे और अय्यर को दिल्ली लौटने पर प्रधानमंत्री ने गर्मजोशी से स्वागत किया। आजाद हिंद फौज के खजाने की लूट में अय्यर का नाम होने के बावजूद नेहरू ने उन्हें 1953 पंच वर्षीय योजना कार्यक्रम का पब्लिसिटी एडवाइजर बना दिया।

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