केंद्र सरकार पर चुनाव से पहले पुलवामा के बाद PRC को लेकर बढ़ता दबाव

भारतीय जनता पार्टी (BJP) असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के जरिए लोकसभा चुनाव 2019 में पूर्वात्तर के राज्यों में माहौल बनाकर बड़ी जीत का ख्वाब देख रही थी. लेकिन जिस तरह से चुनाव से ऐन पहले नागरिकता संशोधन विधेयक विरोध और अब स्थायी निवासी प्रमाण पत्र (PRC) को लेकर अरुणाचल का माहौल तनावपूर्ण हो गया है. इस विरोध की आंच में बीजेपी के जीत के मंसूबे झुलसते हुए नजर आ रहे हैं.

पुलवामा

बता दें कि अरुणाचल प्रदेश में राज्य के बाहर के 6 समुदायों को स्थायी निवासी होने का सर्टिफिकेट देने के खिलाफ लोग आक्रोशित हैं और सड़क पर उतरकर हिंसा कर रहे हैं. प्रदर्शकारियों ने उपमुख्यमंत्री के घर में आग लगा दी है. बढ़ते विरोध के बीच राज्य सरकार स्थायी निवासी प्रमाण पत्र (PRC) के मामले पर बैकफुट पर आ गई है. PRC अब बीजेपी के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है.

पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में लोकसभा की कुल 25 सीटें आती हैं, जिसपर बीजेपी का खास फोकस है. मौजूदा समय में बीजेपी के पास पूर्वोत्तर की 8 सीटें हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी ने पूर्वोत्तर के राज्यों पर खास ध्यान दिया है. इसी का नतीजा है कि बीजेपी ने पूर्वोत्तर को ‘कांग्रेस मुक्त’ कर दिया है. वहीं, पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी खुद सरकार चला रही है या फिर सहयोगी दल के रूप में है.

दरअसल बीजेपी लोकसभा चुनाव में उत्तर और पश्चिम भारत में होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई पूर्वोत्तर के राज्यों के जरिए करना चाहती है. लेकिन जिस तरह से पूर्वोत्तर में विरोध के सुर उठे हैं, उससे बीजेपी के प्लान को बड़ा धक्का लगता हुआ नजर आ रहा है.

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दरअसल असम में NRC की मसौदा सूची जारी होने के बाद अवैध घुसपैठियों की समस्या से जूझ रहे पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों द्वारा उनके राज्य में NRC लागू करने की मांग होने लगी थी. केंद्र की बीजेपी सरकार के इस कदम को जबरदस्त समर्थन हासिल हुआ. बता दें कि बांग्लादेश से आए मुस्लिम घुसपैठियों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बता कर बीजेपी इस मुद्दे को भवनात्मक रूप देकर माहौल बनाती रही है.

वहीं, बीजेपी ने इन चुनावों में पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आने वाले हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने का वादा अपने घोषणापत्र में किया था. लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक और स्थायी निवासी प्रमाण पत्र को लेकर विरोध के सुर जिस तरह उठे हैं. वो बीजेपी को बेचैन कर रहे हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों में लोग और क्षेत्रीय दल विरोध में खड़े हो गए. हालांकि इनमें से अधिकतर क्षेत्रीय दल पूर्वोत्तर के अपने-अपने राज्यों में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं. इसी का नतीजा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा से पास होने के बावजूद राज्यसभा से पास नहीं हो सका है. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर चुनावी माहौल बनाने की कवायद शुरू कर दी थी, लेकिन पूर्वोत्तर में विरोध के चलते भाजपा ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं.

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असम में 14 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से बीजेपी को 2014 में सात सीटें मिली थीं. बीजेपी 2019 के चुनाव में असम में पूरी तरह से क्लीन स्वीप करने की योजना पर काम कर रही है. पीआरसी के जरिए बीजेपी ने अरुणाचल ही नहीं बल्कि असम को भी साधने के मद्देनजर बड़ा दांव चला था, लेकिन यह दांव उसके गले की हड्डी बन गया है.

संयुक्त उच्चाधिकार समिति (जेएचपीसी) ने ऐसे छह समुदायों को स्थानीय निवासी प्रमाण-पत्र देने की सिफारिश की है जो मूल रूप से अरुणाचल प्रदेश के नहीं हैं बल्कि असम के रहने वाले हैं. लेकिन दशकों से नामसाई और चांगलांग जिलों में रह रहे हैं. जिनमें देओरिस, सोनोवाल कचारी, मोरंस, आदिवासी, मिशिंग और गोरखा शामिल हैं. इन्हें असम में अनुसूचित जाति का दर्ज मिला हुआ है. ऐसे में सरकार ने उन्हें अरुणाचल में भी स्थायी निवासी प्रमाण पत्र देने का दांव चला था, लेकिन विरोध के चलते उन्हें यह वापस लेना पड़ा है.

 

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