कुछ ही समय में मून मिशन चंद्रयान-2 हुआ लॉन्च, श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भरी उड़ान…

इसरो के महत्वकांक्षी मून मिशन चंद्रयान- 2 ने दोपहर 2.43 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी। बारिश और घने बादलों के बीच चंद्रयान-2 की उड़ान को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचे। वहीं अभी तक ‘बाहुबली’ नाम से चर्चित जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट सामान्य तरीके से काम कर रहा है।

 

 

 

बतादें की पहले इस मिशन को 15 जुलाई को लॉन्च किया जाना था, लेकिन ऐन वक्त पर लॉन्च व्हीकल में तकनीकी खामी का पता चलने पर इसे टाल दिया गया था। लेकिन इस मिशन को लेकर इसरो ने कई बदलाव भी किए हैं जिससे लॉन्चिंग में होने वाली देरी का प्रभाव नही होगा।

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जहां लॉन्चिंग की तारीख आगे बढ़ाने के बावजूद चंद्रयान-2 चंद्रमा पर तय तारीख 6-7 सितंबर को ही पहुंचेगा। वहीं इसे समय पर पहुंचाने का मकसद यही है कि लैंडर और रोवर तय कार्यक्रम के हिसाब से काम कर सकें। समय बचाने के लिए चंद्रयान पृथ्वी का एक चक्कर कम लगाएगा।

देखा जाये तो पहले 5 चक्कर लगाने थे, पर अब 4 चक्कर लगाएगा। इसकी लैंडिंग ऐसी जगह तय है, जहां सूरज की रोशनी ज्यादा है। रोशनी 21 सितंबर के बाद कम होनी शुरू होगी। लैंडर-रोवर को 15 दिन काम करना है, इसलिए वक्त पर पहुंचना जरूरी है।

लेकिन इस रॉकेट में तीन मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) होंगे। इस मिशन के तहत इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर को उतारेगा। इस बार चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किलो होगा। यह चंद्रयान-1 मिशन (1380 किलो) से करीब तीन गुना ज्यादा है। वहीं लैंडर के अंदर मौजूद रोवर की रफ्तार 1 सेमी प्रति सेकंड रहेगी। चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा।

खबरों के मुतबिक इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच संपर्क कायम करना है। ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के वजूद और विकास का पता लगाया जा सके।

लैंडर और रोवर चांद पर एक दिन (पृथ्वी के 14 दिन के बराबर) काम करेंगे। लैंडर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं। जबकि, रोवर चांद की सतह पर खनिज तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा।

स्वदेशी तकनीक से निर्मित चंद्रयान-2 में कुल 13 पेलोड हैं। आठ ऑर्बिटर में, तीन पेलोड लैंडर विक्रेम और दो पेलोड रोवर प्रज्ञान में हैं। पांच पेलोड भारत के, तीन यूरोप, दो अमेरिका और एक बुल्गारिया के हैं।

दरअसल जीएसएलवी मार्क-3 को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में 4 टन श्रेणी के उपग्रहों को ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है। इसके वाहन में दो ठोस स्ट्रेप ऑन मोटर हैं। इसमें एक कोर तरल बूस्टर है और ऊपर वाले चरण में क्रायोजेनिक है। अब तक इसरो ने 3 जीएसएलवी-एमके 3 रॉकेट भेजे हैं।

 

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