चांद की पूजा तो ठीक, पर छलनी से पति को क्यों देखते हैं?

करवा चौथ में छलनीहिंदू धर्म में व्रत के साथ कई परंपराएं भी जुड़ी होती हैं. हर परंपरा का वैज्ञानिक, धार्मिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष भी होता है. 8 अक्टूबर रविवार को करवाचौथ का व्रत है. इस व्रत में चंद्रमा की पूजा के बाद हर पत्नी अपने पति को छलनी से देखती है और उसकी सलामती की दुआ मांगती है. करवा चौथ में छलनी,चांद और करवा का विशेष महत्व होता है.

मनोवैज्ञानिक पक्ष

पूजा करते समय पहले महिलाएं छलनी से चंद्रमा को देखती हैं उसके बाद अपने पति को. पत्नी जब छलनी से अपने पति को देखती है. उसका मनोवैज्ञानिक मतलब यह होता है कि पत्नी ने अपने ह्रदय के सभी विचारों व भावनाओं को छलनी में छानकर शुद्ध कर लिया है, जिससे उसके सभी दोष दूर हो चुके हैं और ह्रदय में सिर्फ पति के लिए सच्चा प्यार बचा है. यह प्रेम में आपको समर्पित करती हूं और अपना व्रत पूर्ण करती हूं.

पौराणिक कथा

एक पतिव्रता स्त्री जिसका नाम वीरवती था. विवाह के पहले साल करवाचौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख के कारण इसकी हालत खराब होने लगी. भाईयों से बहन की यह स्थिति देखी नहीं जा रही थी. इसलिए चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे दीप रखकर बहन से कहने लगे कि देखो चांद निकल आया है. बहन ने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया. इससे वीरवती के पति की मृत्यु हो गई. वीरवती ने दोबारा करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके बाद मृत पति जीवित हो उठा.

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इसके पश्चात उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और जब पुनः करवा चौथ का व्रत किया तो उसने विधिपूर्वक व्रत किया और उसे सौभाग्य की प्राप्ति हुई. उस करवा चौथ पर उसने हाथ में छलनी लेकर चांद के दर्शन किए.

छांदोग्योपनिषद् के मुताबिक, चंद्रमा पुरुष रूपी ब्रह्मा का रूप है, जिसकी उपासना करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.

चंद्रमा को लंबी आयु का वरदान मिला है जिसके पास रूप, शीतलता और प्रेम और प्रसिद्धि है इसलिए सुहागिन स्त्रियां चंद्रमा की पूजा करती हैं, जिससे ये सारे गुण उनके पति में भी आ जाए.

चंद्रमा शांति प्रदान करता है और मानसिक शांति से संबंध मजबूत होते हैं. चंद्रमा शिव जी की जटा का गहना है इसलिए दीर्घायु का भी प्रतीक है.

पति की दीर्घायु की कामना को लेकर ही व्रत का समापन चंद्रदर्शन के साथ होता है.

 

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