क्या है ऑस्टियोपोरोसिस रोग और इसके समाधान, जानें कुछ सवाल और जवाब

ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसा हड्डी रोग है जिसके होने पर हड्डी कमजोर हो जाती है और अपना घनत्व खो बैठती है। ऑस्टियोपोरोसिस किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है। ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित लोगों को नियमित गतिविधियां करने और सामान्य चलने फिरने से भी फ्रैक्चर या हड्डी टूटने का खतरा अधिक होता है। आज एक वीडियो के माध्यम से फोर्टिस अस्पताल के डॉयरेक्टर आर्थोपेडिक्स डॉ धनंजय गुप्ता हमें ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने और इससे बचाव करने के उपाय बताएंगे।

ऑस्टियोपोरोसिस रोग

प्रश्न1- क्या होता है ऑस्टियोपोरोसिस रोग?

उत्तर- ऑस्टियोपोरोसिस का शाब्दिक अर्थ पोरस बोन्स है। अर्थात ऐसी बीमारी, जिसमें हड्डियों की गुणवत्ता और घनत्व कम होता जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण सामान्यत: जल्दी दिखाई नहीं देते हैं। दरअसल हमारी हड्डियां कैल्शियम, फॉस्फोरस और प्रोटीन के अलावा कई प्रकार के मिनरल्स से बनी होती हैं। लेकिन अनियमित जीवनशैली और बढ़ती उम्र के साथ ये मिनरल नष्ट होने लगते हैं, जिस वजह से हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है और वे कमजोर होने लगती हैं। कई बार तो हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि काई छोटी सी चोट भी फ्रैक्चर का कारण बन जाती है। गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक महिलाओं में हीप फ्रेक्चर (कुल्हे की हड्डी का टूट जाना) की आशंका, स्तन कैंसर, यूटेराइन कैंसर तथा ओवरियन कैंसर जितनी ही है।

प्रश्न2- ऑस्टियोपोरोसिस के शुरुआती संकेत क्या हैं? क्या उम्र के साथ इसके संकेत बदलते हैं?

उत्तर- यूं तो आरंभिक स्थिति में दर्द के अलावा ऑस्टियोपोरोसिस के कुछ खास लक्षण नहीं दिखाई देते, लेकिन जब अक्सर कोई मामूली सी चोट लग जाने पर भी फ्रैक्चर होने लगे, तो यह ऑस्टियोपोरोसिस का बड़ा संकेत होता है।

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इस बीमारी में शरीर के जोडों में जैसे रीढ़, कलाई और हाथ की हड्डी में जल्दी से फ्रैक्चर हो जाता है। इसके अलावा बहुत जल्दी थक जाना, शरीर में बार-बार दर्द होना, खासकर सुबह के वक्त कमर में दर्द होना भी इसके लक्षण होते हैं।

इसकी शुरुआत में तो हड्डियों और मांसपेशियों में हल्का दर्द होता है, लेकिन फिर धीरे-धीरे ये दर्द बढ़ता जाता है। खासतौर पर पीठ के निचले हिस्से और गर्दन में हल्का सा भी दबाव पड़ने पर दर्द तेज हो जाता है।

क्योंकि ऑस्टियोपोरोसिस का शुरुआती दौर में अक्सर पता नहीं लग पाता, इसलिए इसके जोखिम से बचने के लिए पचास साल की आयु के बाद डॉक्टर नियमित अंतराल पर एक्स-रे कराने की सलाह देते हैं, ताकि इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सके।

ऑस्टियोपोरोसिस का शाब्दिक अर्थ पोरस बोन्स है। अर्थात ऐसी बीमारी, जिसमें हड्डियों की गुणवत्ता और घनत्व कम होता जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण सामान्यत: जल्दी दिखाई नहीं देते हैं।

दरअसल हमारी हड्डियां कैल्शियम, फॉस्फोरस और प्रोटीन के अलावा कई प्रकार के मिनरल्स से बनी होती हैं। लेकिन अनियमित जीवनशैली और बढ़ती उम्र के साथ ये मिनरल नष्ट होने लगते हैं, जिस वजह से हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है और वे कमजोर होने लगती हैं।

कई बार तो हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि काई छोटी सी चोट भी फ्रैक्चर का कारण बन जाती है। गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक महिलाओं में हीप फ्रेक्चर (कुल्हे की हड्डी का टूट जाना) की आशंका, स्तन कैंसर, यूटेराइन कैंसर तथा ओवरियन कैंसर जितनी ही है।

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प्रश्न3- ऑस्टियोपोरोसिस की जांच के लिए किस तरह के टेस्ट उपलब्ध हैं? बोन डेंसिटोमेट्री परीक्षण के दौरान क्या होता है?

उत्तर- ऑस्टियोपोरोसिस की जांच के लिए बीएमडी टेस्ट अर्थात बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट कराया जाता है। इस जांच के तहत कमर की हड्डी, कूल्हे, एड़ी, कलाई या हाथ की उंगलियों की विशेष एक्स-रे द्वारा जांच होती है। इस जांच में 2 एक्स-रे ट्यूब के बीच अंगों को रखकर इसकी जांच की जाती है इसलिए इसे Dual Xray Absorptiometry या DXA या डेक्सा स्कैन भी कहते हैं।

इस जांच से प्राप्त परिणाम को टी स्कोर कहते हैं। अगर इस जांच में आपकी हड्डियों का टी-स्कोर 2.5 से ऊपर है, तो आप सुरक्षित हैं। इसके अलावा कैल्केनियल क्वांटिटेटिव अल्ट्रासाउंड के द्वारा भी ऑस्टियोपोरोसिस का पता लगाया जा सकता है। ये एक तरह का स्क्रीनिंग टेस्ट है। इस टेस्ट में हड्डियों की सघनता की 3D जांच की जाती है।

हालांकि ये जांच डेक्सा टेस्ट से मंहगी होती है और इस टेस्ट में मरीज को ज्यादा रेडिएशन का सामना भी करना पड़ता है। मगर ऑस्टियोपोरोसिस की गंभीर स्थिति में इस टेस्ट की मदद ली जाती है ताकि हड्डियां कितनी खराब हो चुकी हैं, इसका अंदाजा लगाया जा सके। तीसरा टेस्ट विटामिन डी का होता है। विटामिन डी टेस्ट को ही ’25-हाइड्रॉक्सी’ विटामिन डी टेस्ट कहते हैं। इस टेस्ट के द्वारा शरीर में विटामिन डी के स्तर का पता लगाया जाता है क्योंकि हड्डियों की मजबूती और कैल्शियम को अवशोषित करने के लिए विटामिन डी जरूरी होता है। हड्डियों में दर्द या विकृति की शिकायत होने पर अक्सर डॉक्टर ये टेस्ट कराने की सलाह देते हैं।

प्रश्न4 टी स्कोर का क्या मतलब है?

उत्तर- ऑस्टियोपोरोसिस की जांच के लिए बीएमडी टेस्ट अर्थात बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट भी कराया जाता है। इस जांच से पता चलता है कि आपकी हड्डी कितनी ठोस है। इस जांच के लिए इस जांच के तहत कमर की हड्डी, कूल्हे, एड़ी, कलाई या हाथ की उंगलियों की विशेष एक्स-रे द्वारा जांच होती है। इस जांच में 2 एक्स-रे ट्यूब के बीच अंगों को रखकर इसकी जांच की जाती है इसलिए इसे Dual Xray Absorptiometry या DXA या डेक्सा स्कैन भी कहते हैं। इस जांच से प्राप्त परिणाम को टी स्कोर कहते हैं। अगर इस जांच में आपकी हड्डियों का टी-स्कोर 2.5 से ऊपर है, तो आप सुरक्षित हैं।

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प्रश्न5 इस रोग के होने के बाद किस तरह का खतरा बढ़ जाता है?

उत्तर- ऑस्टियोपोरोसिस होने के बाद पीड़ित कई तरह की समस्याओं से घिर जाता है। इस रोग के होने के बाद डिप्रेशन, तनाव और घुटनों में दर्द होने की समस्या बढ़ जाती है। थोड़ा सा ​भी गलत चलने फिरने पर फ्रैक्टर और घुटने में दर्द होने लगता है।

प्रश्न6 ऑस्टियोपोरोसिस से किस तरह बचाव संभव है?

उत्तर- खानपान में बदलाव करके इस बीमारी के होन और बढ़ने की संभावना को कम किया जा सकता है। पोषक आहार का सेवन कीजिए, ऐसा आहार जिसमें कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर मात्रा में मौजूद हों, हरी पत्तेदार सब्जियां खायें, डेयरी उत्‍पाद का सेवन करें, खाने में मछली को शामिल कीजिए। नियमित रूप से 1,500 मिलिग्राम कैल्शियम का सेवन हड्डियों को मजबूत रखने के लिए जरूरी है।

शरीर का भार औसत रखें, वजन बढ़ने न दें, मोटापे के कारण भी हड्डियों की बीमारी हो सकती है। प्रतिदिन एक मील पैदल चलने की कोशिश करें। पैदल चलना बोन मास को बढ़ाने में सहायक है। शारीरिक रूप से सक्रिय रहने की कोशिश करें, नियमित रूप से एक्सरसाइज और योग का अभ्‍यास कीजिए।

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प्रश्न7 ऑस्टियोपोरोसिस को सही करने के लिए कैल्शियम और विटामिन डी कितना जरूरी है?

उत्तर- कैल्शियम और विटामिन डी की कमी ऑस्टियोपोरोसिस की मुख्य वजह है। कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाता है जबकि विटामिन डी कैल्शियम को शरीर में अब्जॉर्ब करने का काम करता है। इसलिए कैल्शियम वाले आहार या सप्लीमेंट लेने के साथ-साथ आपको विटामिन डी भी भरपूर लेना चाहिए। विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत धूप है। अगर आप हल्का-फुल्का व्यायाम जैसे वॉक, एरोबिक्स, डांस और लाइट स्ट्रेचिंग करें या योग करें तो इसका खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा रोजाना सीढ़ियां चढ़ना भी आपके लिए फायदेमंद होता है। ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव के लिए आपको कैल्शियमयुक्त आहार जैसे दूध, दही और पनीर का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए। प्रोटीन के लिए आप सोयाबीन, सोया टोफू, मछली, दाल, पालक, मखाना, मूंगफली, अखरोट, काजू, बादाम, स्प्राउट्स और मक्का आदि खा सकते हैं।

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