आ रहे हैं जिनपिंग, एनएसजी में भारत की एंट्री के लिए खुद करेंगे कोशिश

एनएसजी में भारतएनएसजी में भारत को एंट्री अब आसान होती दिख रही है। भारत के सामने दीवार बन कर खड़ा चीन अब खुद हाथ मिलाने को तैयार है। चीन अब एनएसजी में भारत की सदस्यता की संभावनाओं पर बातचीत को तैयार हैं।

बीते महीने भारत ने कहा था कि वह एनएसजी में शामिल होने की कोशिश रहा है। नागरिक परमाणु तकनीक का व्यापार करने वाले 48 देशों के समूह एनएसजी में शामिल होने की पर चीन के साथ मजबूत बातचीत हुई है।

इस हफ्ते गोवा में होने जा रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले चीन के वरिष्‍ठ राजनयिक ने कहा है कि हम एनएसजी में भारत को एंट्री दिलाने के लिए बातचीत को तैयार हैं।

 

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कोशिश में लगे हैं कि अमेरिका, रूस और फ्रांस की साझेदारी में कई अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाए जा सकें, जिनकी मदद से प्रदूषण फैलाने वाले फॉसिल फ्यूल पर देश की निर्भरता कम होगी।

भारत ने वर्ष 1974 में पहली बार परमाणु परीक्षण किए जाने के जवाब में स्थापित किए गए एनएसजी में शामिल होने की उसकी कोशिशें अब तक चीन की वजह से ही नाकाम रही हैं। इसकी वजह यह है कि एनएसजी एकमत होकर काम करता है और चीन इसी नियम के आधार पर भारत की एंट्री अब तक रोकता रहा है।

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए भारत आ रहे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा से पहले चीन के विदेश उपमंत्री ली बाओडॉन्ग ने कहा कि एनएसजी के नियम हमने नहीं बनाए, लेकिन इस बारे में अब भारतीय पक्ष से आगे की बातचीत करने के इच्छुक हैं।

परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों – अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन तथा फ्रांस – को ही परमाणु शक्तियों के रूप में स्वीकार किया जाता है, किसी भी अन्य देश को नहीं।

भारत ने एनपीटी पर दस्तखत करने की संभावना को नकार दिया है, लेकिन उसका कहना है कि अप्रसार के क्षेत्र में भारत के ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर उसे एनएसजी का सदस्य बना लिया जाना चाहिए। वर्ष 2008 में भारत को परमाणु संबंधी व्यापार में शामिल होने के लिए एनएसजी से छूट मिल गई थी, लेकिन संगठन के फैसलों में वोट देने का अधिकार भारत के पास नहीं है।

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