
दुनिया भर में कई जगह से हमें खजाने मिलते ही रहते हैं तो कहीं बड़ा कोई खजाना पाया जाता है तो उस पर मालिकाना हक का दावा सरकार द्वारा ही किया जाता है। दुनिया भर में कहीं भी अगर खजाना होने की बात चलती है तो बड़े बड़े वैज्ञानिक और विशेषज्ञ उसकी खोज में निकल जाते हैं।
भारत में किए गए कई अभियानों में अरबों का खजाना मिल चुका है जिस पर सरकार ने दावा किया। लेकिन आपको शायद पता नहीं होगा एक ऐसे ही खजाने के बारे में जिसकी पुष्टि भी हो चुकी है कि वह वहां पर है।
फिर भी ना तो कोई वैज्ञानिक और ना ही सरकार उस पर अपना हक जता पाई है।एक ऐसा खजाना जिसे सरकार छू भी नहीं पाई है दरअसल हम बात कर रहे हैं ‘कमरूनाग मंदिर’ की झील के बारे में… जहां पर दफन खजाना आप भी अपनी आंखों से देख सकते हैं। फिर भी आप उसे छू तक नहीं सकते है।
यह मंदिर स्थित है हिमाचल प्रदेश के मंडी से लगभग 68 किलोमीटर दूर रोहांडा में किसी मंदिर के पास स्थित है। कमरूनाग झील जिसमें दफन है हजारों साल से जमा खरबों का खजाना।
दरअसल मान्यता के अनुसार इस मंदिर से आप जो भी कामना करते हैं आपकी मनोकामना पूरी हो जाती है और बदले में आपको भी कोई आभूषण इस झील में अर्पित करना होता है और ऐसा हजारों साल पहले से ही होता आ रहा है। इसलिए यहां पर अरबों खरबों का खजाना झील में पहुंच चुका है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार इस मंदिर का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। दरअसल महाभारत के सबसे महान योद्धा ‘बर्बरीक’ जब युद्ध में लड़ने के लिए आए तो भगवान श्री कृष्ण जान चुके थे कि वह सिर्फ कमज़ोर पक्ष की तरफ से ही लड़ेंगे।
और अगर वह कौरवों की तरफ से लड़े तो युद्ध का नतीजा बदल सकता था। इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनका सर भेंट स्वरूप मांगा, इस पर बर्बरीक ने भी कहा कि वह महाभारत का पूरा युद्ध देखना चाहते हैं।
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अपना सर काट कर भगवान श्री कृष्ण को दे दिया। बर्बरीक का सर सबसे ऊंची पहाड़ी पर रखा गया, और यही वह जगह है जहां पर यह मंदिर स्थित है। युद्ध के बाद इस झील का निर्माण भीम द्वारा किया गया।
तब से ही यहां पर आभूषण अर्पित किए जाते हैं। अगर आप यहां जाएंगे तो आपको की झील की गहराई में सोने चांदी के आभूषण नजर आ ही जाएंगे। आपको इसके ऊपर तैरती भारतीय रुपये भी नज़र आएंगे।