वास्तुविज्ञान में देवताओं में प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। गजानन वास्तु दोषों को दूर करते हैं। भगवान श्रीगणेश विघ्न विनाशक एवं मंगलकारी देवता हैं। जहां श्रीगणेश का नित पूजन-अर्चन होता है, वहां रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ का वास होता है। वास्तु देवता को प्रसन्न करने के लिए श्रीगणेश से जुड़े कुछ उपाय हैं जो घर के वास्तु दोष दूर करेंगे।
मंगल करेंगे ये गणेश
सर्वमंगल की कामना करने वालों के लिए सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। सुख, शांति, समृद्धि की चाह रखने वालों को सफेद रंग के विनायक की मूर्ति लाना चाहिए। साथ ही घर में इनका एक स्थाई चित्र भी लगाना चाहिए। घर में पूजा के लिए गणेश जी की शयन या बैठी मुद्रा हो तो अधिक शुभ होती है। यदि कला या अन्य शिक्षा के प्रयोजन से पूजन करना हो तो नृत्य गणेश की प्रतिमा या तस्वीर का पूजन लाभकारी है। ईशान कोण और पूर्व दिशा में सुखकर्ता की मूर्ति या चित्र लगाना शुभ रहता है।
बायीं सूंड वाले गणेश-
घर में बैठे हुए और बायीं ओर मुड़ी सूंड वाले गणेश जी विराजित करना चाहिए। दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी हठी होते हैं और उनकी साधना-आराधना कठिन होती है। वे देर से भक्तों पर प्रसन्न होते हैं।
कार्यस्थल पर-
कार्यस्थल पर गणेश जी की मूर्ति विराजित कर रहे हों तो खड़े हुए गणेश जी की मूर्ति लगाएं। इससे कार्यस्थल पर स्फूर्ति और काम करने की उमंग हमेशा बनी रहती है। ध्यान रहे कि खड़े हुए श्रीगणेश जी के दोनों पैर जमीन को स्पर्श करते हुए हों, इससे कार्य में स्थिरता आती है। कार्य क्षेत्र पर किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा या चित्र लगाए जा सकते हैं, लेकिन यह ध्यान जरूर रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैऋय कोण में नहीं होना चाहिए।
प्रिय हैं मोदक और मूषक-
मंगल मूर्ति को मोदक और उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है। इसलिए मूर्ति स्थापित करने से पहले ध्यान रखें कि मूर्ति या चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा जरूर होना चाहिए।
मुख्यद्वार पर-
यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है।
द्वारवेध के लिए-
यदि भवन में द्वारवेध हो यानि दरवाजे से जुड़ा किसी भी तरह का वास्तुदोष हो (भवन के द्वार के सामने वृक्ष, मंदिर, स्तंभ,सड़क आदि के होने पर द्वारवेध माना जाता है) ऐसे में घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की बैठी हुई प्रतिमा लगानी चाहिए लेकिन उसका आकार 11 अंगुल से अधिक नहीं होना चाहिए।