आज का सुविचार: जानिए चाणक्य ने किस व्यक्ति को मृत कहा है, आप भी कर लें यह सुधार

आचार्य चाणक्य को उनकी नीतियों के लिए जाना जाता है वह दूसरों से अलग सोंच रखने वाले व बहुत गुणवान और विद्वान थे। वह शिक्षक होने के साथ ही एक कुशल अर्थशास्त्री भी थे। अपनी कुशलता को प्रबल करने के लिए चाणक्य ने पूरी निष्ठा से गहन अध्ययन किया था। चाणक्य ने अपने कौशल और बुद्धि के बल से जीवन में सफलता प्राप्त करने की कई नीतियां बनाई थीं। चाणक्य द्वारा बनाई गई उन सभी नीतियों का संग्रह चाणक्य नीति शास्त्र में है। आज हम उन्हीं नीतियों में से कुछ नीतियां आपको बताने जा रहे हैं जिससे आपके विचारों में बदलाव होने के साथ ही आपके दैनिक जीवन में भी सुधार हो जाएगा। साथ ही आज हम जानेंगे कि चाणक्य की नजरों में कौन सा व्यक्ति मृत के समान है।

जो नीच लोग होते है वो दुसरे की कीर्ति को देखकर जलते है, वो दुसरे के बारे में अपशब्द कहते है क्यों की उनकी कुछ करने की औकात नहीं है।

जिस प्रकार एक गाय का बछड़ा, हजारो गायो में अपनी माँ के पीछे चलता है उसी तरह कर्म आदमी के पीछे चलते है।

जिस के काम करने में कोई व्यवस्था नहीं, उसे कोई सुख नहीं मिल सकता। लोगो के बीच या वन में, लोगो के मिलने से उसका ह्रदय जलता है और वन में तो कोई सुविधा होती ही नहीं।

यदि आदमी उपकरण का सहारा ले तो गर्भजल से पानी निकाल सकता है। उसी तरह यदि विद्यार्थी अपने गुरु की सेवा करे तो गुरु के पास जो ज्ञान निधि है उसे प्राप्त करता है।

हमें अपने कर्म का फल मिलता है. हमारी बुद्धि पर इसके पहले हमने जो कर्म किये है उसका निशान है. इसीलिए जो बुद्धिमान लोग है वो सोच विचार कर कर्म करते है।

इस धरती पर अन्न, जल और मीठे वचन ये असली रत्न है, मूर्खो को लगता है पत्थर के टुकड़े रत्न है।

बसंत ऋतू क्या करेगी यदि बास पर पत्ते नहीं आते. सूर्य का क्या दोष यदि उल्लू दिन में देख नहीं सकता. बादलो का क्या दोष यदि बारिश की बूंदे चातक पक्षी की चोच में नहीं गिरती. उसे कोई कैसे बदल सकता है जो किसी के मूल में है।

वह घर जहा ब्राह्मणों के चरण कमल को धोया नहीं जाता, जहा वैदिक मंत्रो का जोर से उच्चारण नहीं होता और जहा भगवान् को और पितरो को भोग नहीं लगाया जाता वह घर एक स्मशान है।

जो दुसरे के पत्नी को अपनी माता मानता है, दुसरे को धन को मिटटी का ढेला, दुसरे के सुख दुःख को अपने सुख दुःख. उसी को सही दृष्टी प्राप्त है और वही विद्वान है।

चाणक्य की नजरों में वह व्यक्ति मृत है जो जीते जी धर्म का पालन नहीं करता, लेकिन जो धर्म पालन में अपने प्राण दे देता है वह मरने के बाद भी बेशक लम्बा जीता है।

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