अयोध्या मामलाः ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई असहमति, फिर चलेगा केस!

Reporter – Awanish kumar

लखनऊ – ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की करीब चार घंटे की बैठक के बाद सदस्यों ने अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुर्नविचार याचिका दायर करने पर सहमति जताई है। इसके साथ ही इन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भी उंगली उठाई है। बैठक के बाद बोर्ड के सदस्यों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड पुर्नविचार याचिका दाखिल करेगा।अयोध्या मामले को लेकर ऑल इंडिया पर्सनल मुस्लिम लॉ बोर्ड रिव्यू फाइल करेगा। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में 40 सदस्य मौजूद थे। अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट से फैसले बोर्ड संतुष्ट नहीं है।

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक मुमताज पीजी कॉलेज डालीगंज में हुई। बैठक के बाद बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने बताया कि मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर नहीं है। इसमें हमारे साथ इंसाफ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि हम अयोध्या में नई मस्जिद के लिए नहीं गए थे। वहां पहले से 27 मस्जिद हैं। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद पर अपने हक के लिए मुकदमा दायर किया था। जीलानी ने कहा कि बाबरी मस्जिद की ऐवज में पांच एकड़ जमीन हम नहीं ले सकते।

इस्लामी शरीयत भी हमें इजाजत नहीं देती कि हम मस्जिद के बदले में जमीन या कुछ भी लें। उन्होंने कहा कि हम 30 दिन के अंदर पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं। इस मामले के सभी पक्षकारों के पास यह अधिकार है। वहीँ मौलाना सैयद कासिम इलियास ने कहा की यह हमारी क़ानूनी लड़ाई है। वहीँ बोर्ड के सदस्य उमरैन महफूज रहमानी ने कहा की हम अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देंगे। मस्जिद की जमीन के बदले में मुसलमान कोई अन्य जमीन कबूल नहीं कर सकते। वहीँ मुस्लिम नेता अरशद जमाल ने बताया की यह हमारी क़ानूनी लड़ाई है और क़ानूनी लड़ाई हक के लिए ही लड़ी जाती है।

रिव्यू पिटीशन के लिए तीन प्रमुख आधार
1. जब 22/23 दिसंबर 1949 की रात बलपूर्वक रखी गई रामचंद्रजी की मूर्ति और अन्य मूर्तियों का रखा जाना असंवैधानिक था तो इस प्रकार असंवैधानिक रूप से रखी गई मूर्तियों को ‘देवता’ कैसे मान लिया गया है? जो हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भी देवता नहीं हो सकते हैँ |
2. जब बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा और नमाज पढ़ा जाना साबित माना गया है तो मस्जिद की जमीन को वाद संख्या 5 के वादी संख्या 1 को किस आधार पर दे दिया गया?

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3. संविधान की अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते समय माननीय न्यायमूर्ति ने इस बात पर विचार नहीं किया कि वक्फ एक्ट 1995 की धारा 104-ए और 51 (1) के अंतर्गत मस्जिद की जमीन को एक्सचेंज या ट्रांसफर पूर्णतया बाधित किया गया है, तो कानून के विरुद्ध और उपरोक्त वैधानिक रोक/पाबंदी को अनुच्छेद 142 के तहत मस्जिद की जमीन के बदले में दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है? जबकि स्वयं माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने दूसरे निर्णयों में स्पष्ट कर रखा है कि अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करने की माननीय न्यायमूर्तियों के लिए कोई सीमा निश्चित नहीं है।

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