अब कोई नहीं जा सकेगा बद्रीनाथ, हो गया ये बड़ा बदलाव…

उच्च हिमालय क्षेत्रों में स्थित चार धामों केदानाथ-बद्रीनाथ और गंगोत्री-यमुनोत्री के द्वार श्रृद्धालुओं के दर्शन के लिए हर वर्ष अक्टूबर और नवंबर में बंद कर दिए जाते हैं।

जो दोबारा छह माह के शीतकाल के बाद अप्रैल-मई में खुलते हैं। गंगोत्री मंदिर के कपाट दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट पर्व पर बंद किए गए थे, जबकि केदारनाथ और यमुनोत्री के कपाट भैया दूज के दिन बंद कर दिए गए थे।

चार धामों केदानाथ-बद्रीनाथ

वहीं मंगलवार, 20 नवंबर को शाम 3 बजकर 21 मिनट पर बद्रीनाथ धाम के कपाट भी बंद कर दिए गए हैं। मंगलवार के दिन बद्रीनाथ मंदिर को बहुत सुंदर व भव्य रूप से सजाया गया और कपाट बंद होने के अवसर पर भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा।

वहां मौजूद अधिकारियों द्वारा बताया गया की इस अवसर पर श्री बद्रीविशाल के दर्शन के लिए लगभग 5237 तीर्थयात्री पहुंचे थे और पूरी यात्रा के दौरान लगभग 1 लाख, 58 हजार 490 तीर्थयात्री पहुंचे थे।

तीन दिन तक चलती है बद्रीनाथ के कपाट बंद करने की प्रक्रिया मंदिर के कपाट बंद होने की प्रक्रिया तीन दिन पहले पंच पूजाओं के साथ शुरु हो जाती है।

कपाट बंद होते समय रावल जी द्वारा भगवान बदरीविशाल को माणा गांव से अर्पित घृत कंबल ओढ़ाया गया। भगवान को शीत से बचाव के लिए सर्दियों में इस धार्मिक परंपरा का निर्वाह किया जाता है।

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आदि गुरु शंकराचार्यजी की गद्दी जोशीमठ, श्री उद्धवजी एवं कुबेरजी की डोली पांडुकेश्वर के लिए कल बुधवार को प्रस्थान करेगी। शंकराचार्य की गद्दी 21 नवंबर योगध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर प्रवास के पश्चात 22 नवंबर दोपहर को नृसिंह मंदिर जोशीमठ पहुंचेगी जबकि श्री उद्वव जी एवं श्री कुबेर शीतकाल में पांडुकेश्वर में प्रवास करेंगे।

इसी के साथ योगध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर एवं नृसिंह मंदिर जोशीमठ में भगवान बद्रीविशाल की शीतकालीन पूजाएं भी शुरू हो जाएगी।

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