इस गाँव की प्रधानमंत्री हैं सोनिया गांधी, मोदी की नोटबंदी भी नहीं डाल पाई असर
पुणे। साल 2016 में 8 नवंबर का दिन ऐसा था, जिसने एक इतिहास बना दिया। इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक संबोधन ने तमाम कालेधन वालों और गैरकानूनी काम करने वालों की रातों की नींद उड़ा दी और तमाम देशवासी रोजाना घंटों बैंकों के बाहर लाइन में खड़े देखे गये। इस दिन प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 के पुराने नोट को चलन से बाहर करने का फैसला लिया था लेकिन हमारे देश में एक गाँव ऐसा भी है जहाँ आज भी सोनिया गांधी का राज चलता है।
महाराष्ट्र के इस गाँव के लोगों ने कभी 1000 का नोट देखा ही नहीं। पुणे से 500 किलोमीटर दूर स्थित रोशामल ऐसा गाँव है जहां पर अधिकतर आदिवासी बस्तियां ही हैं। गाँव इतना पिछड़ा है कि देश और दुनिया में क्या हो रहा है उनको इस बात की खबर ही नहीं है।
इस गांव के लोगों पर पीएम के नोटबंदी के फैसले का कोई असर हुआ ही नहीं क्योंकि यहां के लोगों ने कभी 500 और 1000 के नोट देखे ही नहीं। उन्हे पता ही नहीं कि भारत की मुद्रा में ये भी शामिल हैं। और तो और वे लोग तो आज भी यही समझते हैं कि देश की प्रधानमंत्री सोनिया गाँधी हैं।
कैसे होगा डिजिटलीकरण
एक तरफ हमारे पीएम नरेंद्र मोदी देश के डिजिटलीकरण की बात कह रहे हैं लेकिन इन लोगों को यही नही पता कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड क्या होता है। यहां के लोग 500 और 1000 के नोट से नहीं बल्कि छोटे नोटों में सौदा करते हैं।
लोगों ने बताया कि वे लोग मंडी में अपने मक्का और ज्वार को बेचने के लिए नहीं जा रहे। लोगों ने बताया कि मंडी में इस वक्त जो चीज 13 से 15 रुपए किलो जाती थी वह इस वक्त 10 रुपए प्रति किलो जा रही है। इसलिए उन्होंने अपना सारा सामान फिलहाल रोक रखा है। लेकिन नोटबंदी के बारे में इन लोगों को कोई जानकारी नहीं हैं।
गांव में सड़कें भी नहीं है। उन लोगों को मंडी जाने के लिए कच्चे रास्तों पर दो पहिए या जीप से जाना पड़ता है। वह भी कभी कभी ही गांव में आती हैं। यहां दुकानों पर बोतलों में भरकर मिट्टी का तेल बेचते दुकानदार जरूर देखे जा सकते हैं।
यहां के लोगों को जब नोटबंदी के बारे में बताया कि आजकल बैंक से दो हजार रुपए ही निकल रहे हैं तो उन्होंने कहा कि यह रकम काफी है। उनमें से एक ने कहा, ‘तुम लोगों को इससे ज्यादा पैसे की जरूरत ही क्या है? हमारा तो महीने का काम 1500 में चल जाता है।’