वैज्ञानिकों ने कहा इस साल पिघल जाएगा हिमालय, किसान होंगे बरबाद

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सदी के अंत तक हिमालय और हिंदुकुश की कम से कम एक तिहाई बर्फ पिघल जाएगी. बर्फ पिघलने की वजह से नदियों की दिशा व बहाव में बदलाव आ सकता है जिससे चीन और भारत में फसलों के उत्पादन पर भी असर पड़ेगा.

हिंदुकुश में काफी ऊंचे-ऊंचे ग्लेशियर हैं जिसकी वजह से इसे आर्कटिक और अंटार्कटिक के बाद पृथ्वी का तीसरा पोल कहा जाता है. रिपोर्ट की अगुवाई करने वाले फिलिप वेस्टर ने कहा कि यह ऐसी ‘क्लाइमेट क्राइसिस’ होगी जिसके बारे में आपने सुना भी नहीं होगा.

वेस्टर ने कहा, ‘आने वाली सिर्फ एक सदी में हिंदुकुश में पिछले 800 सालों से जमी हुई बर्फ का एक तिहाई पिघल जाएगा. 210 लेखकों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2100 के पहले इस क्षेत्र की एक-तिहाई बर्फ पिघल जाएगी और यह तब भी होगा अगर सरकारें ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर बने 2015 के पेरिस क्लाइमेट समझौते का पालन करेंगी, और अगर सरकारें इस पर ध्यान नहीं देंगी तो इस क्षेत्र की दो तिहाई बर्फ पिघल जाएगी.

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलेपमेंट (आईसीआईएमओडी) के डिप्टी डायरेक्टर जनरल एकलव्य शर्मा ने कहा, ‘1970 से लेकर अब तक पूरी दुनिया में ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. अगर पूरे हिंदुकुश की बर्फ पिघल जाएगी तो समुद्र का स्तर करीब डेढ़ मीटर बढ़ जाएगा.’

बता दें कि हिंदुकुश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, नेपाल और पाकिस्तान में करीब 3500 किलोमीटर में फैला हुआ है. स्टडी बताती है कि बर्फ पिघलने से यांगत्ज़े, मीकांग, सिंधु और गंगा के प्रवाह पर फर्क पड़ेगा. इन नदियों पर बड़ी संख्या में किसान निर्भर करते हैं. इसके अलावा करीब 25 करोड़ लोग पर्वतों में 165 करोड़ लोग इन नदी की घाटियों में रहते हैं जिनके जीवन पर प्रभाव पड़ेगा.

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नदी के प्रवाह में बदलाव की वजह से बिजली के उत्पादन पर भी फर्क पड़ सकता है और इन क्षेत्रों में और ज़्यादा पर्वतों का कटाव और भूस्खलन हो सकता है.

हालांकि लंदन के एक वैज्ञानिक वूटर ब्यूटार्ट का कहना है कि इस मामले में अभी और ज्यादा रिसर्च की ज़रूरत है क्योंकि ग्लेशियर पिघलने के बाद नदियों में और भी जगहों से पानी मिल जाता है जो ग्लेशियर से निकले हुए पानी के असर को कम कर देता है.

आईसीआईएमओडी के बोर्ड मेंबर दाशो रिनज़िन का कहना है कि ग्लेशियर के पिघलने से सिर्फ द्वीपों पर रहने वाले लोगों का ही जीवन प्रभावित नहीं होगा बल्कि जो लोग पहाड़ों पर रह रहें हैं उनके जीवन पर भी प्रभाव पड़ेगा.

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