फीफा 2022: स्टेडियम में प्रवासी मजदूरों का हो रहा जमकर शोषण
एमनेस्टी के मुताबिक, मजदूरों को न केवल गंदी जगहों पर रहन को मजबूर किया गया है बल्कि भर्ती के लिए भी उनसे भारी फीस वसूली गई और उनकी तनख्वाह-पासपोर्ट ज़ब्त कर लिए गए हैं। एमनेस्टी ने दक्षिण एशिया के 231 आप्रवासी मजदूरों से बात की है। इनमें 132 स्टेडियम और 99 स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में काम कर रहे थे।
खलीफा स्टेडियम में धातु का काम करने वाले एक भारतीय मजदूर ने एमनेस्टी को बताया कि उन्हें कई महीनों से वेतन नहीं मिला और जब शिकायत की तो मालिक ने उन्हें धमकाया। मजदूर ने बताया, “वे मुझपर चिल्लाए और कहा कि यदि मैंने फिर से शिकायत की तो मैं कभी देश छोड़कर नहीं जा सकूंगा।” नेपाल से धातु का काम करने आए एक मज़दूर ने कहा कि उसका जीवन ‘एक कैदी जैसा’ हो गया है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने फुटबॉल की अंतरराष्ट्रीय संस्था फीफा पर भी आरोप लगाया है कि वह इस टूर्नामेंट के आयोजन के लिए मानवाधिकार का हनन रोकने में नाकाम रही है। एमनेस्टी के महासचिव सलिल सेठी ने बताया, “सभी कार्यकर्ताओं की मांग है कि उन्हें समय पर वेतन मिले, जरूरत पड़ने पर देश जाने की इजाजत हो और उनके साथ सम्मानजनक बर्ताव हो।”
उन्होंने कहा, “हम इसे प्रवासी मजदूरों के साथ बदसलूकी के नज़रिए से देख रहे हैं। क़तर फिलहाल 2022 के खेलों के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। वर्ल्ड कप जैसे बड़े खेलों का आयोजन मजदूरों के शोषण की बुनियाद पर नहीं किया जा सकता।” गौरतलब है कि कतर की कुल जनसंख्या का 90 फीसदी विदेशी हैं जो वहां काम करने के लिए गए हैं। उधर कतर सरकार का कहना है कि वह इन आरोपों की जांच कराएगी। उनका कहना है कि प्रवासी मजदूरों का कल्याण उनकी प्राथमिकता है और वो अब कानूनों में सुधार भी करेगी।
पिछले साल कतर सरकार ने आश्वासन दिया था कि वो अपना ‘कफ़ालह’ सिस्टम बदलेगी जिसके तहत दूसरे देशों के मजदूर न तो नौकरी बदल सकते हैं और न अपने मालिक की इजाज़त के बिना देश छोड़कर जा सकते हैं।