
नई दिल्ली : पुलवामा पर आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान के बालाकोट में एयरस्ट्राइक के बाद ज्यादातर ओपिनियन पोल में यह बताया गया कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन लोकसभा चुनाव में बहुमत के करीब पहुंच जाएगा।
जहां इस तरह के तमाम पोल आने के बाद शेयर मार्केट में नई ऊंचाई देखी गई। लेकिन अब कई ब्रोकरेज हाउस की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि पिछले पांच साल में मोदी सरकार के दौरान भारतीय शेयर बाजारों ने जो रिटर्न दिया है, वह मनमोहन सरकार के दौर से बेहतर नहीं है।
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लेकिन करीब 90 करोड़ मतदाताओं वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव का अब अंतिम चरण ही बचा है। ऐसे में शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव का दौर शुरू हो गया है।
जहां शुक्रवार से अब तक सेंसेक्स में 6 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ गई है। वहीं तमाम लोगों की धारणा के विपरीत यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि पीएम मोदी के कार्यकाल में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के बेंचमार्क सेंसेक्स ने महज 51 फीसदी का रिटर्न दिया है. दूसरी तरफ, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले यूपीए फर्स्ट सरकार के कार्यकाल में सेंसेक्स ने 180 फीसदी का रिटर्न दिया, जबकि यूपीए सेकंड सरकार के कार्यकाल में सेंसेक्स ने 78 फीसदी का रिटर्न दिया था।
लेकिन कई ब्रोकरेज हाउस ने जमीनी हालात के अपने अध्ययन के आधार पर यह रिपोर्ट दी है कि चुनाव के बाद एनडीए को गठबंधन के नए साथी तलाशने पड़ सकते हैं।
दूसरी तरफ, अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर की वजह दुनिया भर के बाजार सतर्क दिख रहे हैं। जहां इससे शेयर बाजार में बीयर्स यानी मंदड़ियों का आत्मविश्वास बढ़ा है। मंदड़िए वे ट्रेडर होते हैं जो इस बात पर दांव लगाते हैं कि आगे चलकर बाजार गिरेगा। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का दौर शुरू हो गया है और इसे अभी महज एक शुरुआत मानी जा सकती है।
दरअसल ब्रोकरेज एम्बिट कैपिटल ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि बीजेपी को यूपी में भारी नुकसान होने जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बीजेपी की लहर साफतौर से कमजोर होती दिख रही है और एसपी-बीएसपी 40 से 50 फीसदी वोट शेयर हासिल करता दिख रहा है। ऐसा लगता है कि बीजेपी को यूपी में 30 से 35 सीटें ही मिल पाएंगी।
ऐसे हालात में लगता है कि कुल मिलाकर बीजेपी को सिर्फ 190 से 210 और एनडीए को 220 से 240 सीटें मिलेंगी। जहां इसका मतलब यह है कि एनडीए को सरकार बनाने के लिए कम से कम चार अन्य क्षेत्रीय दलों का सहयोग लेना पड़ेगा। लेकिन ट्रेडर्स को भरोसा है कि केंद्र में जो भी सरकार आए वह सुधार प्रक्रिया को जारी रखेगी और कारोबारी माहौल को निवेश के अनुकूल बनाएगी।