भारत के इन मंदिरों में देवताओं के साथ बसता है देश का इतिहास

आस्था के प्रतीकहमारे देश में मंदिरों की कमी नही है. देश के हर कोने में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं. ये मंदिर आस्था के प्रतीक हैं. साथ ही इनका अपना एक अलग इतिहास भी है.

स्‍वर्ण मंदिर

पंजाब के अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. सोने से बना यह गुरुद्वारा सिखों की आस्था का प्रतीक माना जाता है. इतिहास पर नजर डालें तो सिखों के गुरु अर्जुन देव जी ने लाहौर के एक सूफी संत सांई मियां मीर जी से दिसम्बर 1588 में गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी. सिखों के अलावा यहां अन्य धर्मों के भक्त भी दर्शन के लिए बड़ी दूर-दूर से आते हैं. मंदिर के बाहर एक पवित्र सरोवर भी है जिसमे भक्तगण डुबकी लगाकर भगवान का आर्शीवाद प्राप्‍त करते हैं.

सांची का स्‍तूप

मध्यप्रदेश में स्थित सांची का स्तूप अपनी संस्कृति और नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है. यह भारत के प्राचीन संरचनाओं में से एक है. इस निर्माण तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने करवाया था. उन्होंने अपना राज-काज छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया और सांची के स्तूप का निर्माण किया. यह इमारत गुंबदनुमा है,और ऊपर छत्र का ताज पहनाया गया है.

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वृहदेश्‍वर मंदिर

तमिलनाडु के तंजावुर का वृहदेश्‍वर मंदिर ग्रेनाइट बना हुआ है. दुनिया यह पहला मंदिर है जो ग्रेनाइट से बना हुआ है. यह मंदिर अपनी भव्यता और वास्तुशिल्प और केंद्रीय गुम्बद के चलते यहां आने वाले सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. चोल शासनकाल में 1010 में इस मंदिर को बनाकर तैयार किया गया था.

लिंगराज मंदिर

उड़ीसा की राजधानी भुनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. यह मंदिर वैसे तो भगवान शिव को समर्पित है लेकिन शालिग्राम के रूप में भगवान विष्‍णु भी यहां मौजूद हैं. वास्‍तुकला की दृष्टि से लिंगराज मंदिर उड़ीसा के अन्‍य मंदिरों जैसा नजर आता है. यह मंदिर बाहर से देखने पर फूलों के मोटे गजरा पहना हुआ नजर आता है.

 टेराकोटा मंदिर

पश्चिम बंगाल में स्थित विष्णुपुर एक फेमस शहर है. यहां पर हजारों साल पहले मल्‍ल राजाओं का शासन हुआ करता था. वैष्‍णव धर्म के अनुयायी और राजाओं ने 17वीं और 18वीं शताब्‍दी में मशहूर टेराकोटा मंदिर का निर्माण करवाया था. यह मंदिर बंगाल की वास्तुकला की जीती-जागती तस्वीर हैं.

 

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