आज लोग अदब से लेते हैं नाम

anurag-kashyap_landscape_1459203848एजेन्सी/भले ही आज फिल्म निर्देशकों को बनारस की आबोहवा भा रही है, बनारस पर केंद्रित फिल्में बन रही हैं लेकिन फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप बनारस में फिल्म सिटी के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि बनारस में फिलहाल फिल्म सिटी की जरूरत नहीं है।

फिल्म सिटी से ज्यादा जरूरी है कि  यहां के लोगों में फिल्म बनाने, उसे समझने की संस्कृति विकसित हो। सोमवार को फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप और उनके छोटे भाई अभिनव कश्यप काशी हिंदू विश्वविद्यालय में थे।

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की शूटिंग के दौरान अनुराग कश्यप को यहां काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। शूटिंग देखने के लिए पहुंची भीड़ से पार पाने के लिए उन्हें और उनकी टीम को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। इसी के मद्देनजर बातचीत में उन्होंने कहा कि पहले यहां के लोगों में शूटिंग के कल्चर को विकसित करना होगा।

उन्होंने कहा कि बनारस में इतनी जगह भी नहीं है कि फिल्म सिटी बनाई जा सके। अगर फिल्म सिटी बनाई भी गई तो फ्लॉप साबित होगी। उन्होंने कहा कि बनारस में वो खूबसूरती है जो फिल्म की शूटिंग के लिए मुफीद है लेकिन अभी वो संस्कृति नहीं है कि यहां एक पूरी फिल्म का स्टूडियो सेटअप किया जा सके।बीएचयू के महिला महाविद्यालय में सोमवार को फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप और अभिनव कश्यप ने प्लेटिनम जुबली लेक्चर दिया। उन्होंने अपने अब तक के कॅरियर के उतार-चढ़ाव और उसके अनुभव छात्र-छात्राओं के साथ साझा किए। अनुराग ने अपने बचपन से लेकर अब तक का सफरनामा उनके सामने रखा और कहा कि दुनिया में कोई भी आपको खुद-ब-खुद जगह नहीं देगा। आपको अपनी जगह अपने दम पर बनानी होगी। आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी।

अनुराग ने कहा कि मुझे लोग पिछले चार-पांच साल में जानने लगे हैं जबकि मैं पिछले 25 साल से संघर्ष कर रहा हूं। ठीक इसी तरह आपको भी आप जो चाहते हैं उसे पाने के लिए लगातार मेहनत करनी होगी। यहां तक पहुंचने के लिए आपको नाम, ऐश्वर्य और पैसों का मोह छोड़ना होगा। तब जाकर लोग आप पर भरोसा करेंगे और सराहेंगे।

अभिनव कश्यप ने कहा कि क्रिएटिव राइटिंग वही है जो आपकी भावनाओं को जगाए। बताया कि मैं लिखता था, लेकिन अच्छा लिखता था इसका एहसास मेरे भाई अनुराग ने कराया, मेरी चिट्ठियों के जरिये। ‘दबंग’ की कहानी मैंने अपने पापा को ध्यान में रखकर लिखी थी क्योंकि वे अपनी सर्विस में दबंग माने जाते थे। बताया कि मैंने ‘दबंग’ की कहानी 2006 में लिखी थी लेकिन छह साल तक इस कहानी पर कोई फिल्म बनाने को तैयार नहीं था। उन्होंने कहा कि कभी भी आप कुछ सोचकर न लिखें क्योंकि सोचकर लिखना मुश्किल है।

इस व्याख्यान की अध्यक्षता आईआईटी बीएचयू के पूर्व निदेशक प्रो. केपी सिंह ने की। प्रो. सिंह दोनों ही भाइयों से वर्षों से जुड़े रहे हैं। स्वागत महिला महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो. संध्या सिंह कौशिक ने किया। संचालन प्रो. पद्मिनी रविंद्रनाथ व धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अरुण सिंह ने किया।अपनी मां के कॉलेज महिला महाविद्यालय में आकर अनुराग काफी भावुक हो गए। महाविद्यालय के विजिटर बुक में उन्होंने बाकायदा इसका जिक्र भी किया। उन्होंने लिखा कि पिछली बार मैं यहां तब आया था जब छह महीने का था। मां यहां पढ़ती थीं। आज वह सामने बैठी थीं, जब मैं बोल रहा था, उनकी आंखें नम थीं… मैं गौरवान्वित हुआ।

सुनील, संजय को नहीं मानता एक्टर : अनुराग

फिल्म डायरेक्टर अनुराग कश्यप सुनील शेट्टी और संजय कपूर को एक्टर नहीं मानते। उन्होंने बताया कि जब मैंने ‘पांच’ बनाई, उसके बाद एक प्रोड्यूसर साहब आए मेरे पास और कहा कि आप जिस भी फ्लैट पर हाथ रखेंगे वो आपका होगा। उसके एवज में आपको फिल्म बनानी होगी, सुनील शेट्टी और संजय कपूर को लेकर। उस वक्त मैंने ‘ब्लैक फ्राइडे’ के लिए टेलीविजन सीरीज लिखना पसंद किया क्योंकि मैं उन दोनों को एक्टर मानता ही नहीं था। इसलिए उनके लिए फिल्म बनाने का सवाल ही नहीं था। जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर फिल्म बनाने से जुड़े सवाल पर अनुराग ने कहा, कन्हैया भी कोई कैरेक्टर है…?

कैंटीन में किया वेटर का काम

अनुराग कश्यप जब अपने लेखन व फिल्मी कॅरियर की शुरुआत करने मुंबई गए तब उन्होंने कैंटीन में वेटर तक का काम किया। पृथ्वी थिएटर में उन्होंने मुफ्त में वेटर का काम इसलिए किया क्योंकि वे थिएटर की बारीकियों से रूबरू होना चाहते थे। उस वक्त किसी को पृथ्वी थिएटर में यूं ही इंट्री नहीं मिलती थी। इसलिए उन्होंने वहां पर वेटर का काम करना पसंद किया।

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