आख़िर क्या है ? लिथियम जिसे लेकर भारत-चीन के बीच मची है होड़, जानिए सब कुछ
भारत अब चीन पर से अपनी निर्भरता पूरी तरह से खत्म करने की कोशिश में है. इसी के तहत उसने अर्जेटिना की एक कंपनी के साथ लिथियम को लेकर डील (India Argentina agreement for lithium) की है, जबकि अब तक चीन से भारी मात्रा में ये रासायनिक तत्व आयात किया जा रहा था. बता दें कि लिथियम का इस्तेमाल रिचार्जेबल बैटरियों में होता है और इस क्षेत्र में चीन का भारी दबदबा रहा है. लेकिन अब उम्मीद की जा रही है कि भारत का अर्जेंटिना से करार चीन का दबदबा तोड़ सकेगा.
क्या है लिथियम
जिस शब्द का यहां बार-बार जिक्र हो रहा है यानी लिथियम, सबसे पहले तो उसे ही समझते हैं. ये एक रासायनिक तत्व है, जिसे सबसे हल्की धातुओं की श्रेणी में रखा जाता है. यहां तक कि धातु होने के बाद भी ये चाकू या किसी नुकीली चीज से आसानी से काटा जा सकता है. इस पदार्थ से बनी बैटरी काफी हल्की होने के साथ-साथ आसानी से रिचार्ज हो जाती है.
किस काम आता है ये तत्व
इस तरह से तेल से चलने वाली चीजों की जगह ये रिचार्जेबल बैटरी ले चुकी है. इलेक्ट्रिक कारों और आजकल देश के कोने-कोने में चलने वाले ई-रिक्शा में इसी ई-बैटरी का इस्तेमाल होता है. मोबाइल फोन भी लिथियम-आयन बैटरी से चलते हैं, जिसे LIB भी कहते हैं. इस बैटरी के कारण करोड़ों सालों में बनने वाले जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता कम हुई, जो कि सबसे बड़ी राहत है.
भंडार न होने के कारण आयात
अब ऐसी महत्वपूर्ण चीज के लिए हम अब तक आयात पर निर्भर रहे. हमारे यहां लिथियम का भंडार कम होने के कारण हम इसके लिए चीन से डील करते रहे. इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में भारत ने लीथियम बैटरी का तीगुना आयात किया था. यह 1.2 अरब डॉलर था. बेंगलुरु से लगभग 100 किलोमीटर दूर मांड्या में साल 2020 की शुरुआत में ही इस तत्व का भंडार मिला भी लेकिन पर्याप्त से काफी कम है. ऐसे में भारत ने ऊर्जा जैसे अहम क्षेत्र में चीन से अपनी निर्भरता खत्म करने के लिए कई दूसरे देशों में लिथियम माइन्स खरीदने की सोची.
विदेशों में माइन्स खरीदने की तैयारी
यही देखते हुए साल 2019 में खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (Khanij Bidesh India Ltd) नाम से एक कंपनी बनाई गई. ये कंपनी तीन सरकारी कंपनियों को मिलाकर बनाई गई. इसका मकसद लिथियम जैसे तत्वों को विदेशों से खरीदना है ताकि एनर्जी के क्षेत्र में देश पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो सके. अर्जेंटीना की एक फर्म से हालिया समझौता इसी दिशा में कदम है. उसके पास लिथियम का 3.32 टन से ज्यादा का भंडार है और वो भारत को इसकी आपूर्ति के लिए तैयार होने के इशारे पहले से देता रहा है. इसके अलावा लिथियम से भरपूर देशों चिली और बोलिविया के बारे में देश सोच रहा है.
भारत की इस कोशिश में चीन का सीधा नुकसान है
आपको याद ही होगा कि पिछले साल के मध्य में देश ने चीनी उत्पादों के बहिष्कार की एक तरह से मुहिम ही चला दी, साथ ही कई एप्स को भी बैन किया गया था. अब लिथियम के मामले में चीन से दूरी उसपर करारा आर्थिक हमला होने वाली है क्योंकि भारत ने केवल कच्चा माल, बल्कि रिचार्जेबल बैटरी भी चीन से आयात करता रहा था.
बैटरी तकनीक के मामले में ये साल काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, जब जीवाश्म ईंधन बचाने के लिए लगभग सभी देश LIB पर जोर दे रहे होंगे. ऐसे में भारत चीन के लिए काफी बड़ा बाजार साबित हो सकता था लेकिन अब देश के ताजा कदम ने चीन को बड़ा झटका दिया है.
आसान होगा स्वदेशी बैटरी निर्माण
लिथियम के स्रोत पर अधिकार होने के बाद भारत के लिए अपने देश के अंदर ही बड़े स्तर पर बैटरी निर्माण करना आसान हो जाएगा. नीति नीति आयोग इसके लिए एक बैट्री मैन्युफैक्चरिंग प्रोग्राम भी तैयार कर रही है जिसमें भारत में बैटरी की गीगाफैक्ट्री लगाने वालों को छूट भी दी जाएगी. भारत में लिथियम आयन बैटरी बनने से इलेक्ट्रिक व्हीकल की कुल कीमत भी काफी कम होगी क्योंकि बैटरी की कीमत ही पूरी गाड़ी की कीमत का लगभग 30 फीसदी होती है.
लिथियम आयन बैटरी की गुणवत्ता में सुधार के लिए भी कोशिशें हो रही हैं. जैसे लैपटॉप या फोन चार्ज करने में तो ये तेजी से काम करती हैं लेकिन इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मामले में अब भी सुधार की गुंजाइश है. यही देखते हुए इनपर भी काम की योजना बन रही है.