अपने पुत्र दुर्योधन को निर्वस्त्र क्यों देखना चाहती थीं गांधारी
निर्वस्त्र देखना चाहती थीं गांधारी:
श्रीकृष्ण शिविर से बाहर निकल कर जाते हैं तब रास्ते में दुर्योधन नग्न अवस्था में अपनी माता के शिविर में जाता हुआ श्रीकृष्ण को दिखाई देता है। श्रीकृष्ण हंसते हुए कहते हैं युवराज दुर्योधन आप और इस अवस्था में? तुम अपने वस्त्र कहां भूल आए? और तुम्हारा मुंह तो माता गांधारी के शिविर की ओर है। यह सुनकर दुर्योधन सकपका जाता है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं क्या तुम अपनी माता के पास इस दशा में जा रहे हो? तब दुर्योधन कहता है कि माताश्री का यही आदेश था। तब श्रीकृष्ण कहते हैं किंतु वो तुम्हारी माता है।
दुर्योधन सोच में पड़ जाता है और फिर वह अपने गुप्तांगों पर केले के पत्ते लपेटकर माता गांधारी के समक्ष उपस्थित हो जाता है और कहता है कि मैं स्नान करके आ गया माताश्री। तब गांधारी कहती है मैं क्षणभर के लिए अपनी आंखों पर बंधी ये पट्टी खोलने जा रही हूं। मैंने तुम्हारे भाइयों को तो नहीं देखा। मैं तुम्हें आज देखूंगी।
ऐसा कहकर गांधारी अपनी आंखों की पट्टी खोलकर दुर्योधन को देखती है तो उसकी आंखों से प्रकाश निकलकर दुर्योधन के शरीर पर गिरता है। उसके बाद दुःखी होकर वह पुन: अपनी आंखों की पट्टी बांध लेती हैं। फिर वह कहती हैं, तुम्हारे शरीर का वह भाग जिस पर मेरी दृष्टि पड़ी ही नहीं दुर्बल रह गया पुत्र। शरीर का शेष भाग वज्र का हो गया। अंत में भीम दुर्योधन की जंघा उखाड़कर उसका वध कर देता है।