इस महाशिवरात्रि पर बन रहा है अद्भुत संयोग, ऐसे करें पूजा तो मिल जायेगा शिव का आशीर्वाद…

महाशिवरात्रि का नाम अंतर्मन में आते ही भगवान शिव के अनेकों रूपों शिव, शंकर, रूद्र, महाकाल, महादेव, भोलेनाथ आदि-आदि रूपों के अनंत गुणों की कहानियां स्मरण होने लगती हैं।
शिव ही ब्रह्म हैं और यही ब्रह्म जब आमोद-प्रमोद अथवा हास-परिहास के लिए नयापन सोचते हैं तो श्रृष्टि का सृजन करते हैं। महादेव बनकर देव उत्पन्न करते हैं तो ब्रह्मा बनकर मैथुनीक्रिया से श्रृष्टि का सृजन करते हैं।
महाशिवरात्रि पर बना अद्भुत संयोग
जीवों का भरण-पोषण करने के लिए महादेव श्रीविष्णु बन जाते हैं और इन जीवात्माओं का चिरस्वास्थ्य बना रहे, इसके लिए भगवान मृत्युंजय बनकर रोग हरण भी करते हैं।
जब यही जीवात्माएं अपने शिवमार्ग से भटकती हैं और अनाचार-अत्याचार में लग जाती हैं, तो महाकाल, यम और रूद्र के रूप में इनका संहार भी करते हैं। अतः इस चराचर जगत के आदि और अंत शिव ही हैं।
पृथ्वीलोक पर इनके रुद्र रूप कि पूजा सर्वाधिक होती है। पौराणिक मान्यता है कि महादेव श्रृष्टि का सृजन और प्रलय सायंकाल-प्रदोषबेला में ही करते हैं, इसलिए इनकी पूजा आराधना का फल प्रदोष काल में ही श्रेष्ठ माना गया है।
त्रयोदशी तिथि का अंत और चतुर्दशी तिथि के आरंभ का संधिकाल ही इनकी परम अवधि है।
किसी भी ग्रह, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण आदि तथा सुबह-शाम के संधिकाल को प्रदोषकाल कहा जाता है।
इसलिए चतुर्दशी तिथि के स्वामी स्वयं भगवान शिव ही है।
वैसे तो शिवरात्रि हर माह के कृष्ण पक्ष कि चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है, किन्तु फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
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