देश का पहला भगोड़ा आर्थिक अपराधी हैं विजय माल्या, विशेष अदालत का फैसला

नई दिल्ली.भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून-2018 के तहत माल्या पहला अपराधी है जिसे भगोड़ा घोषित किया गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इसकी अपील की थी। माल्या की संपत्तियां जब्त करने को लेकर 5 फरवरी को सुनवाई होगी।विजय माल्या (62) को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) अदालत ने शनिवार को भगोड़ा घोषित कर दिया हैं।

Vijay Mallya Mumbai Special Pmla Court

माल्या पर भारतीय बैंकों के 9,000 करोड़ रुपए बकाया हैं। एसबीआई के नेतृत्व वाले 17 बैंकों के कंसोर्शियम ने माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस को लोन दिया था। माल्या लोन नहीं चुका पाया और मार्च 2016 में लंदन भाग गया। माल्या पर मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी के भी आरोप हैं। ईडी के साथ सीबीआई और आयकर विभाग भी माल्या के खिलाफ आरोपों की जांच कर रहा है।

माल्या ने ईडी की याचिका को चुनौती दी थी

ईडी ने पिछले साल जुलाई में पीएमएलए अदालत से अपील की थी कि माल्या को नए कानून (भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून-2018) के तहत भगोड़ा घोषित किया जाए। साथ ही माल्या की 12,500 करोड़ रुपए की संपत्तियां जब्त करने की इजाजत भी मांगी थी। माल्या ने ईडी की याचिका पर सुनवाई नहीं करने की अपील की थी। लेकिन, कोर्ट ने 30 अक्टूबर को इसे खारिज कर दिया। ईडी की याचिका के खिलाफ माल्या बॉम्बे हाईकोर्ट भी पहुंचा था लेकिन वहां भी उसकी अपील खारिज हो गई।
लंदन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत 10 दिसंबर को यह फैसला दे चुकी है कि माल्या को भारत प्रत्यर्पित किया जाए। अदालत ने मामला ब्रिटिश सरकार को भेज दिया था। वहां की सरकार अदालत के फैसले से संतुष्ट होती है तो वह माल्या के प्रत्यर्पण का आदेश जारी करेगी। ऐसा होता है तो माल्या के पास 14 दिन में हाईकोर्ट में अपील का अधिकार होगा।

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माल्या ने अगर प्रत्यर्पण के फैसले के खिलाफ अपील नहीं की तो यूके की सरकार के आदेश जारी करने के 28 दिन में उसका प्रत्यर्पण किया जाएगा।

माल्या ने दिया था कर्ज चुकाने का ऑफर
प्रत्यर्पण पर फैसला आने से 5 दिन पहले माल्या ने ट्वीट कर भारतीय बैंकों और सरकार से अपील की थी कि वह 100% कर्ज चुकाने को तैयार है। उसका प्रस्ताव मान लिया जाए। माल्या ने कहा था “नेता और मीडिया मेरे डिफॉल्टर होने और सरकारी बैंकों से लोन लेकर भागने की बात जोर-शोर से कह रहे हैं। यह गलत है। मेरे साथ सही बर्ताव क्यों नहीं होता? 2016 में जब मैंने कर्नाटक हाईकोर्ट में सेटलमेंट का प्रस्ताव रखा था तो इसका प्रचार क्यों नहीं किया गया?”

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