
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई और उपहार हादसा पीड़ित संघ की ओर से दायर याचिका पर सोमवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिकाओं में रियल एस्टेट के बड़े करोबारी गोपाल और सुशील अंसल को दी गई सजा के आदेश पर पुनर्विचार का आग्रह किया गया है। दोनों को 13 जून 1997 में हुए उपहार अग्निकांड के लिए दोषी करार देते हुए सजा सुनाई गई है। उस अग्निकांड में 59 लोगों की जान गई थी।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, कुरियन जोसेफ और आदर्श कुमार गोयल ने बहस समाप्त होने तक आदेश सुरक्षित कर लिया क्योंकि अंसल ब्रदर्स के वकील ने इस याचिका का विरोध किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि जिस आदेश पर पुनर्विचार करने की मांग की गई वह इसी में मिला हुआ है।
शीर्ष अदालत ने अपने 2015 के फैसले में अंसल बंधुओं की सजा भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (लापरवाही के कारण मौत) के तहत बढ़ाकर अधिकतम कर दी थी। लेकिन शीर्ष अदालत ने दोनों को सजा के साथ-साथ 30-30 करोड़ रुपये देने को भी कहा था। इस सजा की अवधि में दोनों जितने दिनों तक जेल में रह चुके थे वह अवधि भी शामिल थी।
इस फैसले को लेकर हंगामा हुआ था क्योंकि अंसल बंधुओं को मात्र पांच से छह माह तक ही जेल में रहना पड़ा। निचली अदालत ने दोनों को दो साल कैद की सजा सुनाई थी जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने 19 दिसंबर 2008 के अपने फैसले में घटाकर एक साल कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनिल आर दवे (अब सेवानिवृत्त), न्यायमूर्ति जोसेफ और न्यायमूर्ति गोयल ने 22 सितंबर 2015 को फैसला सुनाया जिस पर पुनर्विचार के लिए सीबीआई और उपहार हादसा पीड़ित संघ ने याचिका दायर की।
मामला तत्कालीन न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर (वर्तमान मुख्य न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र (अब सेवानिवृत्त) की पीठ में गया। दोनों न्यायाधीश दोषी करार दिए जाने पर तो सहमत थे लेकिन सजा को लेकर अलग-अलग राय थी। इस वजह से यह मामला तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष गया।
न्यायमूर्ति ठाकुर अंसल बंधुओं को एक साल कैद की सजा दी थी जबकि न्यायमूर्ति मिश्र ने दो साल की सजा के साथ दोनों पर 50-50 करोड़ के लिए दंड भी लगाया था। उन्होंने कहा था कि अंसल बंधु जो 100 करोड़ रुपये भुगतान करेंगे उससे इलाके में एक ट्रामा सेंटर बनाया जाएगा।