जानिए… क्यों नहीं होती है सूर्य के इस मंदिर में पूजा-अर्चना

सूर्य के मंदिरकोणार्क शब्द, कोण और अर्क शब्दों के मेल से बना है। अर्क का अर्थ होता है सूर्य जबकि कोण से अभिप्राय कोने या किनारे से रहा होगा। कोणार्क का सूर्य मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र तट के क़रीब निर्मित है। यह कई इतिहासकारों का मत है, कि कोणार्क मंदिर के निर्माणकर्ता, राजा लांगूल नृसिंहदेव की अकाल मृत्यु के कारण, मंदिर का निर्माण कार्य खटाई में पड़ गया। इसके परिणामस्वरूप, अधूरा ढांचा ध्वस्त हो गया।

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लेकिन यह मंदिर जिसमें पूजा नहीं हुई आश्चर्य कि बात है, एक तरफ़ जिसे मंदिर कहा जाये वहीं पूजा न हो ये भी किसी अचम्भे से कम नहीं है। यहां के स्थानीय लोगों की अगर माने तो आज तक इस मंदिर में कभी पूजा नहीं हुई और अब तक ये मंदिर एक वर्जिन मंदिर है। कहा जाता है की मंदिर के प्रमुख वास्तुकार के पुत्र ने राजा द्वारा उसके पिता के बाद इस निर्माणाधीन मंदिर के अंदर ही आत्महत्या कर ली जिससे बाद से इस मंदिर में पूजा या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

मंदिर का रहस्यमय चुम्बक

इस मंदिर का एक और प्रमुख आकर्षण यहां मौजूद चुम्बक है। यहां मौजूद चुंबक पर भी कई रहस्य और किवदंतियां हैं। कई कथाओं के अनुसार, सूर्य मंदिर के शिखर पर एक चुम्बक पत्थर लगा है। इसके प्रभाव से, कोणार्क के समुद्र से गुजरने वाले सागरपोत, इस ओर खिंचे चले आते है, जिससे उन्हें भारी क्षति हो जाती है। अन्य कथा अनुसार, इस पत्थर के कारण पोतों के चुम्बकीय दिशा निरुपण यंत्र सही दिशा नहीं बताते। इस कारण अपने पोतों को बचाने हेतु, मुस्लिम नाविक इस पत्थर को निकाल ले गये। यह पत्थर एक केन्द्रीय शिला का कार्य कर रहा था, जिससे मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे। इसके हटने के कारण, मंदिर की दीवारों का संतुलन खो गया, और परिणामतः वे गिर पड़ीं। परन्तु इस घटना का कोई एतिहासिक विवरण नहीं मिलता, ना ही ऐसे किसी चुम्बकीय केन्द्रीय पत्थर के अस्तित्व का कोई ब्यौरा उपलब्ध है।

कालापहाड़ कोणार्क मंदिर ध्वस्त हुआ

यह मंदिर अपने वास्तु दोषों के कारण मात्र 800 वर्षों में ही ध्वस्त हो गया। यह इमारत वास्तु-नियमों के विरुद्ध बनी थी। मंदिर का निर्माण रथ आकृति होने से पूर्व, दिशा, एवं आग्नेय एवं ईशान कोण खंडित हो गए। पूर्व से देखने पर पता लगता है, कि ईशान एवं आग्नेय कोणों को काटकर यह वायव्य एवं नैऋर्त्य कोणों की ओर बढ़ गया है।

उड़ीसा राज्य के पवित्र शहर पुरी के पास कोणार्क का सूर्य मंदिर स्थित है। यह भव्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और भारत का प्रसिद्घ तीर्थ स्थल है। सूर्य देवता के रथ के आकार में बनाया गया यह मंदिर भारत की मध्यकालीन वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। सूर्य मंदिर जाना जाता है यहाँ के सभी पत्थरों पर की गई अद्भुत नक्काशी के लिए।

इस सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।

हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्य देवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए हैं और रथ को खींचने के लिए उसमें 7 घोड़े जुते हुए हैं। सूर्य देवता के रथ के आकार में बने कोणार्क के इस मंदिर में भी पत्थर के पहिए और घोड़े हैं, साथ ही इन पर उत्तम नक्काशी भी की गई है। ऐसा शानदार मंदिर विश्व में शायद ही कहीं हो! इसीलिए इसे देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक यहाँ आते हैं। यहाँ की सूर्य प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित रखी गई है और अब यहाँ कोई भी देव मूर्ति नहीं है।

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सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे सूर्य देवता नियंत्रित करते हैं। पूर्व दिशा की ओर जुते हुए मंदिर के 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। 12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं, वहीं इनमें लगी 8 ताड़ियां दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप है। कुछ लोगों का मानना है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं। पूरे मंदिर में पत्थरों पर कई विषयों और दृश्यों पर मूर्तियाँ बनाई गई हैं।

पौराणिक महत्त्व

यह मंदिर सूर्यदेव (अर्क) को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग बिरंचि-नारायण कहते थे। यह जिस क्षेत्र में स्थित था, उसे अर्क-क्षेत्र या पद्म-क्षेत्र कहा जाता था। पुराणानुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्ष तपस्या की, और सूर्य देव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसका रोग भी अन्त किया।

कैसे पहुंचें

उडीसा की राजधानी से भुवनेश्‍वर से कोणार्क 65 किलोमीटर की दूरी पर है। भुवनेश्‍वर अच्‍छी तरह से वायु व रेल यातायात से जुड़ा है। आप भुवनेश्‍वर से बस द्वारा कोणार्क की यात्रा कर सकते हैं।

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