Uttarakhand: क्या है यह एसिंप्टोमैटिक कोरोना? महामारी से ज्यादा खतरनाक…
कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इस वक्त देश में 20,000 से ज्यादा संक्रमित हैं और 3,976 मरीज ठीक हो चुके हैं. इन दिनों इतने केस आने के पीछे का कारण टेस्टिंग में बढ़ोत्तरी है. जितने ज्यादा जांच होगी, उतना सच बाहर आएगा. लेकिन इसके पहले मरीज के अंदर कोरोना के लक्षण दिखना बहुत जरुरी है. बिना लक्षणों के कोरोना के मरीज को पहचान पाना वो भी इतनी आबादी में बहुत कठिन हो जाता है. इसी बात ने स्वास्थ्य विभाग की चिंता बढ़ा दी है.
यह वह मरीज हैं जिनमें खांसी, जुकाम, बुखार और सांस लेने में दिक्कत जैसे प्राथमिक लक्षण नहीं पाए गए। ट्रैवल हिस्ट्री होने या किसी संक्रमित के संपर्क में आने की आशंका पर कोरोना जांच कराई गई तो संक्रमण की पुष्टि हुई।
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मेडिकल की भाषा में इसे एसिंप्टोमैटिक कोरोना कहा जाता है। राजकीय दून मेडिकल अस्पताल में भी भर्ती ज्यादातर मरीजों में एसिंप्टोमैटिक कोरोना पाया गया है।
ऐसे मामलों को विशेषज्ञ मानते हैं ज्यादा खतरनाक
ऐसे मामलों को डॉक्टर और अन्य विशेषज्ञ ज्यादा खतरनाक मानते हैं। वजह साफ है कि इस तरह के मामले में न तो मरीज को खुद पता होता है कि उसे कोरोना हो चुका है और न ही इस बात का पता चल पाता है कि उसके संपर्क में आने से और लोगों में भी कोरोना फैल गया होगा।
राजकीय दून मेडिकल अस्पताल के डिप्टी एमएस एवं कोरोना के स्टेट कोऑर्डिनेटर डॉ. एनएस खत्री ने बताया कि भर्ती होने वाले कई कोरोना पॉजिटिव कोरोना के बिना प्राथमिक लक्षण वाले हैं। इसलिए सभी को मास्क पहनना बहुत जरूरी है।
मास्क पहनना अनिवार्य
श्रीमहंत इंदिरेश अस्पताल के वरिष्ठ पल्मनोलॉजिस्ट डॉ. जगदीश रावत ने बताया कि एसिंप्टोमैटिक कोरोना मरीज संक्रमण फैलाने में ज्यादा खतरनाक हैं। दरअसल इस तरह के मरीज कोरोना के कम्युनिटी फैलाव में ज्यादा खतरनाक होते हैं।
इसलिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च नई दिल्ली की ओर से जारी नई गाइडलाइन में सभी लोगों को चाहे वह स्वस्थ्य क्यों न हों, मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग और हाथों को साबुन से बार-बार धुलने व हाथों को सैनिटाइज करना भी बेहद जरूरी है।