दिल्ली का वो नेता जिसके चर्चे भारत से ज्यादा पाकिस्तान में होते हैं

अमित विक्रम शुक्ला

भारतीय राजनीति में ऐसे-ऐसे राजनीतिज्ञ पैदा हुए हैं, जिन्होंने समाज की सेवा के लिए लीक से हटकर काम करना बेहतर समझा। उन नेताओं ने जनता से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं के लिए धूप-छांव की परवाह किए बगैर अपना जीवन दांव पर लगा दिया।

इसी कड़ी में एक ऐसे नेता का नाम आता है, जोकि सरकारी नौकरी छोड़कर हिन्दुस्तान को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की मुहिम में कूद पड़ा। दरअसल, हम बात कर रहे हैं। ‘मफलर मैन’ यानी अरविन्द केजरीवाल की।

केजरीवाल

केजरीवाल का जन्म 16 अगस्त 1968 हरियाणा के छोटे से गांव सिवानी में हुआ था। तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन अरविन्द ‘द अरविन्द केजरीवाल’ बनकर देश की राजनीति में एक अलग मुकाम हासिल करेंगे।

लेकिन केजरीवाल जी को ‘धरनामैन’ भी कहना अनुचित नहीं होगा। वो क्या है न। बात-बात पर सरजी धरने पर बैठ जाते हैं। दिल्ली की सत्ता पर बैठकर जनता के हित की कसमें खाने के बाद भी छोटी-छोटी को बात लेकर समाधान के नाम पर उन्हें धरना ही सबसे उचित फैसला लगता है।

केजरीवाल

और कुछ दिनों पहले तो AC रूम में सोफे के ऊपर धरने पर बैठ गये। खैर हो सकता है। बदलते देश और समाज को उनके इस धरने की शैली ने असली तरीके से परिभाषित किया हो।

केजरीवाल

शिक्षा, नौकरी और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर केजरीवाल का जीवन

केजरीवाल ने वेस्ट बंगाल के खडगपुर से मकैनिकल इंजीनियर में स्नातक किया। उसके बाद 1992 में भारतीय नागरिक सेवा में चुने गए। बाद में भारतीय राजस्व सेवा में आ गये। उन्हें दिल्ली के आयकर आयुक्त कार्यालय में नियुक्त किया गया। लेकिन केजरीवाल ने अपने कार्यकाल के दौरान यह पाया कि भ्रष्टाचार के कारण पारदर्शिता की कमी हैं।

केजरीवाल

इस पद पर रहते हुए ही केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम छेड़ दी सन 2000 में अरविन्द केजरीवाल ने एक N.G.O. ‘परिवर्तन’ की स्थापना कर ली और 2006 को केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया।

भ्रष्टाचार

इस्तीफे का साफ़ मतलब अपना पूरा समय ‘परिवर्तन’ को देना। अरविन्द केजरीवाल का साथ उनके सहयोगी अरुणा रॉय, गोरे लाल मनीषी आदि लोगो ने मिलकर सूचना का अधिकार के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था और 2005 में संसद में सूचना के अधिकार को पारित किया गया।

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सूचना के अधिकार (RIGHT TO INFORMATION) में आम आदमी सीधे सरकार से सवाल कर सकता हैं।

अरविन्द केजरीवाल का राजनीति में कदम

अरविन्द केजरीवाल ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत सन 2012 से की। केजरीवाल ‘गांधी टोपी’ और ‘अन्ना टोपी’ पहन कर सड़को में निकले और टोपी पर भी यह लिखवाया ‘मैं आम आदमी हूँ’। बाद में केजरीवाल ने सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और भूमि भवन विकास कार्यकर्ता डी.एल.एफ. के बीच भ्रष्टाचार के बारे में खुलासा किया। उसके बाद अनेक मंत्रियो के खिलाफ जंग छेड़ दी।

आम आदमी पार्टी’ का गठन

अपनी पार्टी की घोषणा अरविंदर केजरीवाल ने लोकपाल आन्दोलन और बहुत से सहयोगियों द्वारा 26 नवम्बर सन 2012 को भारतीय सविंधान के 63वीं वर्षगांठ पर जंतर-मंतर दिल्ली पर की गई।

‘आम आदमी पार्टी’ का गठन

दिल्ली विधान सभा चुनाव 2013

2013 में हुए दिल्ली के चुनावों में उन्होंने एक सीट से चुनाव लड़ा और इनके विरोधी थी उस समय की मौजूदा कांग्रेस पार्टी की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित। केजरीवाल ने न्यू दिल्ली से चुनाव लड़ा और यही से श्रीमती शीला दीक्षित भी चुनाव लड़ रही थीं। इस चुनाव में केजरीवाल ने श्रीमती दीक्षित को भारी भरकम 25864 वोटों से हराया। इस चुनावों में दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अच्छी जीत दर्ज की।

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आम आदमी ने दिल्ली के 70 सीटो में से 28 सीटो पर विजय प्राप्त की। इस चुनाव में भाजपा दूसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी जबकि कांग्रेस 3 पर रही।

दिल्ली का ऐतिहासिक विधानसभा चुनाव

इस चुनाव में अरविन्द केजरीवाल ने 70 सीटो में से 67 सीटो में रिकार्ड जीत दर्ज की और पार्टी ने बहुमत हासिल किया तथा 14 फरवरी 2015 को दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। हां… उस समय EVM ने बहुत बढ़िया काम किया था। मतलब एकदम पारदर्शी।

दूसरी बार ‘सरजी’ बने दिल्ली के मुखिया

केजरीवाल पहले कार्यकाल में 49 दिनों तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहें। दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद केजरीवाल ने Z प्लस की सुरक्षा वापस की। अपने कार्यकाल के समय बिजली की कीमतों में 50% की छूट की घोषणा की। बाद में केजरीवाल ने दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय के खिलाफ धरना भी दिया।

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केजरीवाल ने कई बड़े कंपनीज के खिलाफ अपना उग्र रवैया अपनाया। समाज सेवा के दौरान उनके लिये लोकपाल बिल भी एक मुद्दा रहा। वहीँ अगर उपलब्धियों की बात करें तो सूचना का अधिकार, जन लोकपाल विधेयक, जन लोक पाल विधेयक आन्दोलन 2011 रहें।

पाकिस्तान भी करता है ‘सरजी’ की तारीफ

वैसे तो पाकिस्तान कैसा मुल्क है। इसका अनुमान आप दिन-ब-दिन अपनाए जा रहे उसके रवैये से लगा सकते हैं। और इसका आंकलन करने में आपको ज्यादा दिक्कत भी नहीं आएगी। खैर ये तो हुई अलग बात। अब बात करते हैं केजरीवाल की।

दरअसल, केंद्र की सत्ता पर काबिज़ मोदी सरकार ने पाकिस्तान को मुह-तोड़ जवाब देते हुए सर्जिकल स्ट्राइक किया। तो दिल्ली के मुखिया केजरीवाल को ये बात न गंवारा गुजरी और उन्होंने सीधे तौर पर उनको झूठा बता दिया। जिसके बाद बड़ी कंट्रोवर्सी खड़ी हो गई।

जहां एक ओर केजरीवाल की कही बात किसी के गले से नीचे नहीं उतर रही थी। वहीँ पाकिस्तान को ये बात पूरी तरह पच गई। और उन्होंने केजरीवाल का सपोर्ट ज़ोरदार तरीके से किया।

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जिसको लेकर कई सवाल भी खड़े हुए। लेकिन तब तक केजरीवाल पड़ोसी मुल्क में मसीहा बन चुके थे।

एक झटके में पाकिस्तान के हीरो बन गए केजरीवाल

सर्जिकल स्ट्राइक पर मोदी से सबूत मांगने के बाद पाकिस्तान ने #PakStandsWithKejriwal हैशटैग (पाकिस्तान केजरीवाल के साथ है) चला दिया था।

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यही नहीं पाकिस्तान के उस समय के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के निजी सलाहकार सरताज अज़ीज़ ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, ‘मुझे यह जान कर गर्व हो रहा है कि हमारे पास जनाब अरविंद केजरीवाल जैसे दोस्त हैं। ज़रूरत पड़ने पर जो भाई काम आता है वही सही मायनों में भाई है।’

बहुत पुरस्कार मिले हैं ‘सरजी’ को

अशोक फैलो सिविक 2004, सत्येन्द्र दुबे मेमोरियल अवार्ड आई. आई. टी कानपुर, सरकारी कामो में पारदर्शिता लाने ले खिलाफ 2005 में।

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अच्छे विचार और अच्छे नेतृत्व के लिये रमन मेगसेसे अवार्ड 2006, आई. आई. टी. खड़गपुर पूर्व छात्र हेतु 2009, टाइम मैगजीन द्वारा विश्व के प्रभावशाली व्यक्ति के लिये 2014।

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