बजट की बहार के बीच यहां छलक रहा दर्द… न शौचालय बने, न गैस कनेक्शन मिले!

सरकारी योजनाशिवपुरी। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के खतौरा गांव की आदिवासी बस्ती में रहने वाली 25 से ज्यादा महिलाएं एक स्वर में कहती हैं कि सरकारी योजना के तहत न तो उनके घरों में शौचालय बने हैं और न ही उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन ही मिले हैं। वे प्रधानमंत्री आवास योजना से भी वंचित हैं। वे नेताओं और सरकारों के रवैए से बेहद निराश हैं।

केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को लोकसभा में वर्ष 2018-19 का आम बजट पेश किया। इस बजट में गरीबों के कल्याण के साथ वर्ष 2022 तक हर गरीब को मकान देने का वादा किया गया।

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इसी तरह आगामी वित्तीय वर्ष में दो करोड़ शौचालय बनाने और उज्ज्वला योजना के तहत तीन करोड़ मुफ्त गैस कनेक्शन देने का भरोसा दिलाया गया है। इसके अलावा अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।

बजट में किए गए प्रावधानों से आदिवासी ज्यादा खुश नहीं हैं, क्योंकि उनके पुराने अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं। शिवपुरी के खतौरा गांव की आदिवासी बस्ती के लोगों की दशा बताती है कि उन्हें अब तक वे सुविधाएं नहीं मिल सकी हैं, जिनके वादे सरकारें कई वर्षो से करती आ रही हैं।

सहरिया आदिवासियों के बीच वर्षो से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मनीष राजपूत का कहना है कि आदिवासियों की स्थिति अभी भी चिंताजनक है। केंद्र या राज्य सरकार भले ही कुछ कहे, मगर उन तक योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाता है। राज्य सरकार ने सहरिया, बैगा और भारिया आदिवासियों को कुपोषण से मुक्त करने के लिए एक हजार रुपये मासिक भत्ता देने का ऐलान किया, कुछ के खाते में यह राशि आ भी गई, मगर आदिवासी अपने लिए स्थायी रोजगार चाहता है, जिस पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है।

राजपूत का कहना है कि यही कारण है कि प्रदेश में 14 साल से भाजपा की सरकार है, अब उसे आदिवासियों की याद आई है। आदिवासियों को लगता है कि एक हजार मासिक की राशि इस इलाके में होने वाले उपचुनाव को देखते हुए दी गई है। अगर सरकार वास्तव में आदिवासियों का कल्याण चाहती है, तो उन्हें दीगर सुविधाएं भी मुहैया करानी थी।

आदिवासी बस्ती में बने मकान प्रधानमंत्री आवास योजना की हकीकत की गवाही देते हैं। आदिवासियों के मकान कच्ची दीवारों के और खपरैल वाले हैं। सहरिया आदिवासी रेखा (24) से जैसे ही आवास, शौचालय और गैस कनेक्शन की बात की जाती है, तो वह भड़क उठती है। उसका कहना है, “हमें अब तक न तो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मिला, न शौचालय बना और न ही गैस कनेक्शन मिला। हमें ही नहीं, पूरी बस्ती को खुले में शौच जाना पड़ता है। इसके अलावा लकड़ी जुटाने के लिए उसे कई घंटे जंगल में गुजारना पड़ते हैं।”

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इसी गांव की फूलन देवी (28) ने आईएएनएस को कहा कि उनकी पूरी बस्ती में किसी को भी उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन नहीं मिला है और अन्य सुविधाएं भी नहीं मिली हैं।

दमना आदिवासी (60) बताते हैं, “हमारी बस्ती में सुविधा तो कोई नहीं है, न तो मकान बने हैं और न ही शौचालय। अब तक जितनी भी सरकारें आई हैं, उन सभी ने वादे किए, चुनाव हो गए तो जनप्रतिनिधि लौटकर नहीं आए। हमने कई सरकारें देखीं, मगर आदिवासियों के लिए किसी ने काम नहीं किया।”

दमना बरसात को याद करते हुए परेशान हो जाते हैं। वे बताते हैं कि उनकी बस्ती में बारिश का पानी भरने पर कई कई दिनों तक वे बस्ती से नहीं निकल पाते।

बिन्नी आदिवासी (55) बताती हैं कि सरकार ने बतौर भत्ता एक हजार रुपये महीना देने का ऐलान किया, राशि उनके खाते में आ गई है, मगर अन्य सुविधाएं उनकी बस्ती में किसी को नसीब नहीं हुई है। हर कोई पानी, शौचालय और गैस कनेक्शन के लिए परेशान घूम रहा है।

राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वर्ष 2022 तक सभी को आवास उपलब्ध कराने का वादा करते रहे हैं। चौहान के मुताबिक, पांच लाख शहरी और 15 लाख ग्रामीण इलाकों में आवास बनाए जाएंगे। राज्य के 11 से ज्यादा शहर खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं।

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