‘स्मार्टफोन के इस्तेमाल से अकेले हो रहे लोगों मे बढ़ रही उदासी और चिंता

नई दिल्ली:  स्मार्टफोन का अत्यधिक उपयोग चीजों के दुरुपयोग और व्यसन के समान है। जो लोग फोन का अधिक उपयोग करते हैं, वे बहुत अलग-थलग महसूस करते हैं। ऐसे लोग अकेलापन, उदासी और चिंता महसूस करते हैं। एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। अध्ययन के मुताबिक, जो लोग स्मार्टफोन का अधिक उपयोग करते हैं, वे लगातार गतिविधियों के बीच फोन में खो जाते हैं और अपना ध्यान केंद्रित नहीं रख पाते। फोन के सही उपयोग के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है कि इस तरह की लत हमें मानसिक रूप से थका देती है और आराम नहीं करने देती।

स्मार्टफोन

हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा,”हमारे फोन और कंप्यूटर पर आने वाले नोटिफिकेशन, कंपन और अन्य अलर्ट हमें लगातार स्क्रीन की ओर देखने के लिए मजबूर करते हैं। शोध के मुताबिक, यह अलर्टनेस कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया का परिणाम है जैसा कि किसी खतरे के समय या हमले के समय प्रतीत होता है।”

उन्होंने कहा, “इसका मतलब यह है कि हमारा मस्तिष्क लगातार सक्रिय और सतर्क रहता है, जोकि इसकी स्वस्थ कार्य प्रणाली के अनुरूप नहीं है। हम लगातार उस गतिविधि की तलाश करते हैं और उसकी अनुपस्थिति में बेचैन, उत्तेजित और अकेलापन महसूस होता है।”

डॉ. अग्रवाल ने कहा, “यदि हमें 30 मिनट तक कोई कॉल प्राप्त न हो तो चिंता होने लगती है। करीब 30 प्रतिशत मोबाइल उपयोगकर्ताओं में यह समस्या होती है। फैंटम रिंगिंग 20 से 30 प्रतिशत मोबाइल उपयोगकर्ताओं में मौजूद होती है। आपको ऐसा महसूस होता है कि आपका फोन बज रहा है और आप बार बार उसे चैक करते हैं, जबकि ऐसा सच में होता नहीं है।”

अध्ययन के मुताबिक, सोशल मीडिया प्रौद्योगिकी की लत सामाजिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इसके जरिए होने वाला संचार आधा-अधूरा होता है और इसे आमने सामने के संचार का विकल्प नहीं माना जा सकता। इसमें शरीर की भाषा और अन्य रिश्तों की गरमाहट का अभाव होता है।

अध्ययन में कहा गया, “30 प्रतिशत मामलों में स्मार्टफोन माता-पिता के बीच झगड़े का कारण भी बनता है। मोबाइल अधिक यूज करने वाले बच्चे अक्सर देर से उठते हैं और स्कूल जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं। औसतन, लोग सोने से पहले स्मार्ट फोन के साथ बिस्तर में 30 से 60 मिनट बिताते हैं।”

डॉ. अग्रवाल ने बताया, “गैजेट्स के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने के कारण मस्तिष्क के ग्रे मैटर में कमी आती है, जोकि संज्ञान और भावनात्मक नियंत्रण के लिए जिम्मेदार होता है। इस डिजिटल युग में, अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है संयम। हममें से अधिकांश लोग ऐसे उपकरणों के दास बन गए हैं, जो वास्तव में हमें फ्रीडम प्रदान करने के लिए थे और हमें जीवन का अनुभव प्रदान करने और लोगों के साथ रहने हेतु अधिक समय देने के लिए बनाए गए थे। हम अपने बच्चों को भी उसी गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं।”

डॉ अग्रवाल ने इससे बचाव का सुझाव देते हुए कहा, ” इलेक्ट्रॉनिक कर्फ्यू का मतलब है सोने से 30 मिनट पहले किसी भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का उपयोग न करना। हर तीन महीने में सात दिनों के लिए फेसबुक से अवकाश लें। सप्ताह में एक बार पूरे दिन सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बचें। मोबाइल का उपयोग केवल जरूरी बात करने के लिए करें। दिन में तीन घंटे से अधिक समय तक कंप्यूटर का उपयोग न करें।”

उन्होंने कहा, “अपने मोबाइल टॉकटाइम को दिन में दो घंटे से अधिक समय तक सीमित करें। दिन में एक से अधिक बार अपनी मोबाइल बैटरी रिचार्ज न करें। अस्पताल के सेटअप में मोबाइल भी संक्रमण का स्रोत हो सकता है, इसलिए, इसे हर रोज कीटाणुरहित करना आवश्यक है।”

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