इस तीर्थस्थल पर निवास करते हैं शिव-पार्वती, दर्शन करने से मिलेगा मोक्ष

तीर्थस्थलउत्तराखंड राज्य के बागेश्वर को भगवान शिव के कारण तीर्थराज भी कहा जाता है। सरयू और गोमती का भौतिक संगम होने के साथ-साथ सरस्वती का मिलन भी यहीं होना बताया जाता है। हां, सरस्वती यहां गुप्त रूप से निवास करती हैं। उत्तरायण शुरू होते ही प्रयाग की तरह ही यहां भी एक महीने का माघ मेला लगता है।

अल्मोड़ा से करीब 75 किलोमीटर दूर बागेश्वर के विषय में स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है। बागेश्वर असल में शिव की लीला स्थली है। भगवान शिव के गण चंडीस ने इसकी स्थापना की। इसे ‘दूसरी काशी’ भी कहा जाता है। यहां शंकर-पार्वती निवास करते हैं।

नील पर्वत की आभा देखते ही बनती है। गोमती और सरयू का परस्पर मिलन मन को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करता है। यहां आकर स्नान से पूर्व मुंडन जरूर करवाना चाहिए। असल में हमारे पाप सिर के बालों की जड़ों में ही निवास करते हैं। कहा जाता है कि शिव के समक्ष ही यहां आकाश में स्वयंभू लिंग उत्पन्न हुआ, जिसकी यहां मौजूद ऋषियों ने बागीश्वर रूप में विधि-विधान से आराधना की।

स्कंद पुराण में कथा है कि एक बार मार्कंडेय ऋषि नीलपर्वत पर मौजूद ब्रह्मकपाली शिला पर तपस्या कर रहे थे। ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जब देव लोक से विष्णु की मानसपुत्री सरयू को लेकर आए तो तपस्या में लीन मार्कंडेय ऋषि के कारण सरयू को आगे बढ़ने के लिए रास्ता नहीं मिला।

शिव जी से संकट दूर करने का निवेदन किया गया। शिव जी ने तब बाघ का रूप धारण किया और माता पार्वती ने गाय का। गाय जब घास खा रही थी तो बाघ ने जोर से गर्जना की। डर के मारे गाय जोर-जोर से रंभाने लगी। मार्कंडेय की समाधि भंग हो गई। गाय को बाघ से बचाने के लिए मार्कंडेय दौड़ पडे़। सरयू तुरंत आगे बढ़ गईं।

कलकल बहती सरयू का स्नान मोक्ष प्रदान करता है। सरयू का सतोगुणी जल पीने से सोमपान का फल मिलता है तो स्नान करने से अश्वमेघ का फल। इस तीर्थ में जिनकी मृत्यु होती है, वे शिव को ही प्राप्त होते हैं। बागेश्वर सूर्य तीर्थ तथा अग्नि तीर्थ के बीच स्थित है। गोमती नदी अम्बरीष मुनि के आश्रम में पालित नंदिनी गाय के सींगों के प्रहार से उत्पन्न हुई हैं, जिनका जल तमोगुणी माना जाता है।

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