पार्टी की बिगड़ी छवि को सुधारना राहुल का सबसे बड़ा टास्क, फिर तो चुनौतियां और भी हैं
नई दिल्ली। राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी का नया मुखिया बनने की तैयारी में हैं। आज सोमवार को उन्होंने अध्यक्ष पद के लिए नामंकन करा दिया। फिलहाल वर्तमान समय में वे पार्टी के उपाध्यक्ष के तौर पर काम कर रहे हैं। लेकिन अब जल्द ही पार्टी की बागडोर राहुल के हाथों में आने वाली है।
यूं तो मौजूदा अध्यक्ष और राहुल की मां सोनिया की नासाज तबियत के कारण सारा दारोमदार राहुल के ही कांधो पर है। पर कुछ मामलों में उनके पास अभी वे अधिकार नहीं, जिनके जारी स्वतंत्रता पूर्वक वे कोई फैसला ले सकें।
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अब यह तो साफ़ हो गया कि अब इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस की कमान अब राहुल के हाथों में होगी, लेकिन इस पद के साथ उनपर बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है।
अध्यक्ष पद पर बैठना उनके लिए इतना भी आसान नहीं होने वाला, उन्हें आगे चलकर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
जानकारी के मुताबिक़ पार्टी में सत्ता के लगभग दो केंद्र एक साथ चल रहे थे, पार्टी में भी नेताओं की दो कतारें थी।
एक वो जो अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रति वफादार थी (अधिकतर पुराने नेता और पदाधिकारी) और दूसरी वो जो जल्द से जल्द राहुल को पार्टी की बागडोर सौंपने की वकालत कर रहे थे।
अध्यक्ष चुने जाने के बाद राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है खुद को पार्टी के सर्वमान्य नेता के तौर पर स्थापित करना, जैसी स्वीकार्यता उनकी मां सोनिया गांधी और दादी इंदिरा गांधी की रही है।
बता दें पार्टी अध्यक्ष पद पर चुने जाने से पहले ही महाराष्ट्र इकाई के सचिव और पार्टी के युवा चेहरे शहजाद पूनावाला ने राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, शहजाद ने राहुल गांधी के नामांकन और पूरी चुनाव प्रक्रिया को ढोंग बताया है।
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उनके अलावा भी कई छोटे-बड़े नेता गाहे-बगाहे राहुल गांधी का विरोध करते रहे हैं, ऐसे में उनके सामने सबसे मुश्किल काम पार्टी में खुद को ऐसे नेता के तौर पर स्थापित करने का है, जिसके पीछे पूरी पार्टी खड़ी हो सके।
वहीं दूसरी ओर लगातार चुनावों में हार के कारण कांग्रेस पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बिल्कुल निचले पायदान पर पहुंच चुका है। ऐसे में जरूरत है ऐसे नेता की जो उनका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा सके।
कैडर के हिसाब से आज भी कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी है और देश में उसके लाखों कार्यकर्ता हैं। लेकिन पार्टी की लगातार बुरी गत के कारण ज्यादातर कार्यकर्ता निष्क्रिय हो चुके हैं, ऐसे में जरूरत है उन सब को सक्रिय करके पार्टी की जड़ें मजबूत करने की। जिससे आगामी चुनावों के लिए कांग्रेस सत्तारूढ़ भाजपा को टक्कर दे सके।
राहुल के सामने एक बड़ी चुनौती लगभग शून्य हो चुके विपक्ष और उसके एक सर्वमान्य नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने की भी है। भाजपा के लगातार सभी राज्यों में जीत का एक बड़ा कारण कमजोर पड़ता विपक्ष भी है, जिसके कारण भाजपा को कहीं कोई बड़ी चुनौती नहीं मिल पाती।
ऐसे में राहुल अगर विपक्ष के तौर पर कांग्रेस पार्टी और विपक्ष के नेता के तौर पर खुद को मजबूती से स्थापित कर पाते हैं तो इसका बड़ा अंतर देखने को मिलेगा।
वर्तमान में विपक्ष में कोई इस कद का नेता नहीं है जो प्रधानमंत्री मोदी या भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुकाबले में खड़ा हो सके, अगर राहुल गांधी यह कारनामा कर पाते हैं तो इसका सीधा लाभ उनकी पार्टी को मिलेगा।
इसके अलावा भाजपा विरोधी पार्टियों को एक मंच पर लाकर उन्हें भाजपा के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करना भी राहुल के लिए मुश्किल टास्क होगा।
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एक दौर में कांग्रेस पार्टी दलित और मुस्लिम वोट बैंक के अलावा ओबीसी वोटरों की पसंदीदा हुआ करती थी, लेकिन पार्टी नेताओं की लगातार अनदेखी के कारण पार्टी का यह जनाधार धीरे-धीरे खिसकता चला गया। नतीजतन कांग्रेस को एक के बाद एक लगातार हार का सामना करना पड़ा।
कभी मुस्लिम और दलित कांग्रेस का पुख्ता वोट बैंक होते थे, लेकिन एक दौर में आकर पार्टी ने उन्हें अपनी बपौती मान लिया जिसका नतीजा हुआ कि मुस्लिम वोट बैंक को सपा मुखिया मुलायम सिंह ने अपनी ओर मोड़ लिया जबकि दलित वोट बैंक को मायावती की बसपा ले उड़ी।
ऐसे में राहुल के सामने बड़ी चुनौती अपने इस प्रमुख वोट बैंक को वापिस लौटाने की भी है। बिना मुस्लिम और दलितों के जुड़े कांग्रेस पार्टी के उद्भाव की संभावना कम ही है।
अब मुख्य और सबसे बड़ी चुनौती की बात की जाए तो राहुल के लिए 2019 लोकसभा चुनाव में अपनी प्रबल दावेदारी साबित कर बना बड़ा टास्क माना जा रहा है।
दरअसल साल 2014 में भाजपा द्वारा किया गया तख्तापलट मोदी लहर के साथ जो सैलाब लेकर आया, उसमें सभी विपक्षियों एक हद तक अपना दम तोड़ दिया।
एक के बाद एक होने वाले चुनावों में भाजपा का प्रबल प्रदर्शन अपना अलग ही कीर्तिमान स्थापित कर चुका है।
उसे टक्कर देना राहुल के लिए इतना आसान न होगा। उन्हें खुद के साथ अपनी पार्टी को इस तरह से तैयार करना होगा की उनकी बिगड़ी हुई छवि को सुधारा जा सके। लोग पार्टी को चुनाव चिंह से ही नहीं बल्कि उनके नाम से जाने और माने भी। तभी पार्टी का उज्वल भविष्य संभव है।
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