‘जनहित याचिका न्याय दिलाने के लिए, न्यायिक सक्रियता के लिए नहीं’
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर ने कहा कि मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में न्यायपालिका शांत और निष्क्रिय नहीं रह सकती और जनहित याचिका (पीआईएल) के माध्यम से लोग न्याय पा सकते हैं लेकिन कई बार इसका घालमेल न्यायिक सक्रियता से कर दिया जाता है।
उन्होंने कहा, “मानवधिकार का हनन होने पर न्यायपालिका को कदम उठाना पड़ता है और कानून को लागू करवाना पड़ता है।” उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग और अपराध से सुरक्षा के अधिकार पर भी जोर दिया।
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न्यायमूर्ति ने कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव (सीएचआरआई) की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कहा, “अगर लोगों के अधिकार का हनन होता है तो न्यायपालिका शांत नहीं रह सकती। अगर मानवधिकार का उल्लंघन हो रहा है तो न्यायपालिका अपने हाथों को मोड़कर नहीं बैठी रह सकती।”
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि जनहित याचिका द्वारा न्याय तक पहुंच का अधिकार पाया जा सकता है, लेकिन कभी-कभी इसे न्यायिक सक्रियता का रूप देने की वजह से परेशानी होती है।
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उन्होंने जनहित याचिका को सरकार की निष्क्रियता से निपटने के लिए जरूरी बताते हुए कहा, “न्यायपालिका को आगे बढ़ना चाहिए और इस पर (जनहित याचिका पर) नोटिस लेना चाहिए।”
उन्होंने अदालत के आदेश के बावजूद न्याय प्राप्त करने में बाधा या राज्य द्वारा कानून लागू करने में विफल रहने का हवाला देते हुए कहा कि समाज को राजनीतिक और बाहुबल की चुनौतियों को सामना करना पड़ता है।
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