Navratri 2021 second day :मां ब्रह्मचारिणी की पूजा क्यों की जाती है? इस मंत्र से पूजा होगी सफल
नवरात्रि का पर्व शुरु हो गया हैं। इन नौ दिनों में नौ देवीओं की पूजा की जाती नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती हैं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा क्योंकि की जाती हैं और क्या महत्व होता हैं आज इस बारे में हम जानेगे।
दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती हैं शास्त्रों अनुसार मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा मां की विशेष स्वरुप माना जाता हैं। शास्त्रों के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से तप,शक्ति ,त्याग ,सदाचार, संयम और वैराग्य में वृद्धि होती हैं और शत्रुओं को पराजित कर उन पर विजय प्रदान करती हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी की पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी को पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण दर्जा दिया गया हैं। मां की पूजा करने से ब्रह्मचारिणी के नाम का अर्थ पता चलता हैं, साथ ही मां के तपस्या और चारिणी यानि आचरण को भी जाना जा सकता हैं
मां ब्रह्मचारिणी पूजा करने से जीवन तप त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम प्राप्त होता है। वहीं मां के दाहिने हाथ में माला और बाएं हाथ में कमण्डल होता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जीवन में सफलता की प्राप्ती होती हैं। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से जीवन में आने वाले संकटो से लड़ने की शाक्ति मिलती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी पूजा करने के लिए शुक्रवार प्रात: उठकर नित्यकर्मो नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल पर बैठे। मां दुर्गा के इस स्वरूप मां ब्रह्माचिरणी की पूजा करें. उन्हें अक्षत, फूल, रोली, चंदन आदि अर्पित करें। मां को दूध, दही, घृत, मधु और शक्कर से स्नान कराएं। मां ब्रह्मचारिणी को पान, सुपारी, लौंग भी चढ़ाएं। इसके बाद मंत्रों का उच्चारण करें। हवनकुंड में हवन करें साथ ही इस मंत्र का जाप करते रहें।
मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने का मंत्र- ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्यै नम:.
इसके उपरांत मां ब्रह्मचारिणी की कथा करें इस कथा के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था। मां ब्रह्मचारिणी को पर्वतराज हिमालय की पुत्री भी कहा जाता हैं। कठोर तप के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाकर बिताएं। इसके बाद मां ने कठिन उपवास किया था,साथ ही 100 वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया था। भोले नाथ प्रसन्न ना होने के कारण उन्होने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए और कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। मां ब्रह्मचारणी कठिन तपस्या के कारण बहुत कमजोर हो हो गई। इस तपस्या को देख सभी देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने सरहाना की और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया।