मुर्गा ‘एक’ और हड़पने के लिए दो बाहुबली राज्य कर रहे जंग

नई दिल्ली। मुर्गा ‘एक’ और हड़पने के लिए दो राज्य, ऐसा ही मिलता जुलता डायलॉग आपने फिल्म शोले में सुना होगा। लेकिन यह मामला फिल्मी नहीं एक दम सही सही है। इस मुर्गे के लिए दो राज्य आमने सामने आ गए हैं।

मुर्गे

मध्य प्रदेश और इससे अलग हुआ छत्तीसगढ़ के बीच एक मुर्गे की विशेष प्रजाति को लेकर झगड़ा चल रहा है। कड़कनाथ नामक मुर्गे की प्रजाति पर दोनों राज्य अपना दावा जता रहे हैं। दोनों ही राज्य दावा कर रहे हैं कि कड़कनाथ मुर्गे पर पहला हक़ उनका है।

जानकारी के मुताबिक काले रंग के इस महंगे मुर्गे का स्वाद ऐसा है कि कड़कनाथ चिकन खाने वालों की पहली पसंद बनता जा रहा है। यही वजह है कि एमपी का झाबुआ और छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले इस पर अपना दावा ठोंक रहे हैं।

वैसे इस बात का फैसला जीआई टैग प्रदान करने वाली चेन्नई की संस्थान को करना है। उसके बाद भी दोनों राज्य मामले को लेकर आमने-सामने हैं। दरअसल कड़कनाथ मुर्गे का कारोबार करने वालों की खूब कमाई हो रही है और यही वजह है कि इसके जीआई टैग पर दंतेवाड़ा दावा कर रहा है।

वहीं दंतेवाड़ा के दावे पर झाबुआ के अधिकारी ऐतराज जता रहे हैं। वैसे दोनों पक्षों की ओर से दावा किया जा रहा है कि कड़कनाथ के चूजे हमारे यहां से लाए गए थे। इसलिए जीआई टैग पर भी दोनों जिले अपना दावा जता रहे हैं।

दरअसल जीआई यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग किसी स्थान विशेष से संबद्ध है जो उस उत्पाद का मूल है और उस टैग की वजह से उत्पादकों की अलग पहचान बनती है।

यूं ही नहीं ये मुर्गा कहलाता कड़कनाथ

इस मुर्गे का रंग काला होता है और कीमत आम चिकन के मुकाबले तीन गुनी। महंगा होने के बावजूद इस कड़क मीट का जादू शौकीनों के सर चढ़ कर बोल रहा है।

लगभग 500 रुपए प्रति किलो कीमत वाले इस चिकन की मार्केट में भारी डिमांड है। स्थानीय लोग इसे कालीमासी कहते हैं जबकि आम तौर पर ये कड़कनाथ के नाम से जाना जाता है। ये एक प्रीमियम ब्रीड है।

दंतेवाड़ा में कड़कनाथ मुर्गे पालने के लिए कई पोल्ट्री फॉर्म बने हैं। यहां के लोगों के लिए ये काला मुर्गा कमाई का सबसे कड़क जरिया बनता जा रहा है।

पोल्ट्री फॉर्म वालों की मानी जाए तो 1,000 मुर्गे पालकर 5 लाख रुपये तक आसानी से कमाए जा सकते हैं। इन्हें पालने के लिए पहले सीजन में सरकार 90 प्रतिशत तक की सब्सिडी भी देती है। जबकि आगे के वर्षों में दवाओं के लिए सरकारी मदद दी जाती है।

उन्होंने बताया कि कड़कनाथ भले ही दंतेवाड़ा में पाला जाता है, लेकिन यह मुर्गा पूर्वी मध्य प्रदेश के झाबुआ और धार जिलों से संबंध रखता है। फिलहाल, दंतेवाड़ा जिले में 76 उद्यमी इस प्रजाति के 76,000 मुर्गे पाल रहे हैं।

दंतेवाड़ा प्रशासन ने कड़कनाथ के लिए जिऑग्रैफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग के लिए आवेदन भी कर रखा है।

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