आपको भी सता रही भविष्य की चिंता, तो पढ़ें यह कहानी

मुस्लिम संत करमानी की बेटी उनसे बढ़कर थी। उसकी सुंदरता और अच्छे स्वभाव की चर्चा शहंशाह तक पहुंच चुकी थी। शहंशाह ने तय किया कि वे अपने बेटे का निकाह करमानी की बेटी से कराएंगे। उन्होंने अपने खास दूत के साथ प्रस्ताव भेजा, लेकिन करमानी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी का निकाह किसी राजघराने में हो। इसलिए उन्होंने बादशाह का प्रस्ताव ठुकरा कर बेटी का निकाह किसी फकीर से कर दिया।

संत करमानी

निकाह के बाद बेटी अपने खाविंद (शौहर) के घर आई, तो उसने देखा कि एक कटोरे में पानी और थाली में सूखी रोटी के टुकड़े ढंके हुए हैं। उसने शौहर से कहा कि आप मुझे तत्काल मेरे पिता के पास छोड़ दें।

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इस पर फकीर ने कहा, ‘मैं जानता था कि तुम जैसी शाही खानदार की लड़की मुझ जैसे फकीर के साथ कभी बसर नहीं कर सकेगी। इसलिए मैंने तुम्हारे अब्बाजान के सामने अपनी हालत का बयान कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने तुम्हारी शादी मुझसे करने की रजामंदी दे दी। अगर मैं जानता कि तुम मेरे हालात से वाकिफ नहीं हो, तो मैं कभी निकाह के लिए राजी नहीं होता।’

इस पर लड़की ने जवाब दिया, ‘नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं है। मैं तो अब्बाजान से इस बात की शिकायत करने जाना चाहती थी कि आपने तो यह कहा था कि आप मेरा निकाह खुदादोस्त (भक्त) और परहेजगार (संयमी) व्यक्ति से करेंगे, मगर मैंने तो यह पाया कि मेरे शौहर का तो अल्लाह पर भरोसा ही नहीं है। इसीलिए तो उसने पहले दिन का खाना दूसरे दिन के लिए रख छोड़ा है। आप ही बताएं कि क्या यह तवक्कुल (खुदा की इच्छा) के खिलाफ नहीं है? मुझ पर यकीन कीजिए, आप जो भी खाएंगे, मैं भी वैसा ही खाऊंगी। मेरे लिए खाना रख छोड़ने की कोई जरूरत नहीं।’

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उसके बाद से फकीर ने कभी कल की चिंता नहीं की। खुदा की इबादत के साथ अपना काम करता रहा। उसे कभी भूखा नहीं रहना पड़ा।

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