
पूरे देश में गणेश चतुर्थी की धूम मची हुई है. जगह-जगह पर गणेश जी के भक्तों ने पंडाल सजा रखे हैं. वैसे तो गणेश जी के बारे में सभी जानते है. लेकिन क्या गणपति के सभी अवतारों के बारे में भी जानते हैं. अगर नहीं जानते तो कोई बात नहीं. आज हम गणेश जी के अवतारों के बारे में बताएंगे.
सभी देवताओं की तरह ही गणपति जी ने बुरी शक्तियों का खात्मा करने के लिए कई अवतार लिए हैं. इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि में भी किया गया है. बप्पा ने आठ अवतार लिए हैं.
धूम्रवर्ण अवतार—एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया. राजा बनते ही सूर्य को अभिमान हो गया. उन्हें एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई. उसका नाम था अहम. उसने शुक्राचार्य को गुरु बना लिया. वह अहम से अहंतासुर हो गया. उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए. उसने भी अत्याचार और अनाचार फैलाया. तब बप्पा ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया. धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराभाव किया. उसे युद्ध में हरा कर अपनी भक्ति का वरदान दिया.
एकदंत अवतार— महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद की रचना की. वह च्यवन का पुत्र कहलाया. मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली. शिक्षा पूरी होने के बाद उसने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया. सारे देवता उससे प्रताडि़त रहने लगे. मद इतना शक्तिशाली हो चुका था कि उसने भगवान शिव को भी पराजित कर दिया. सारे देवताओं ने मिलकर गणपति की आराधना की.
तब भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट हुए. एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया.
विघ्नराज अवतार— एक बार पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हंस पड़ीं. उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई. पार्वती ने उसका नाम मम (ममता) रख दिया. वह माता पार्वती से मिलने के बाद वन में तप के लिए चला गया. वहीं उसकी मुलाकात शम्बरासुर से हुई. शम्बरासुर ने उसे कई आसुरी शक्तियां सीखा दीं. उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा. मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्मांड का राज मांग लिया.
शम्बर ने उसका विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया. शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया. ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं के बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया. तब देवताओं ने गणेश की उपासना की. गणेश विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए. उन्होंने ममासुर का मान मर्दन कर देवताओं को छुड़वाया.
महोदर अवतार— जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को संस्कार देकर देवताओं के खिलाफ खड़ा कर दिया. मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की. तब गणेश ने महोदर अवतार लिया. महोदर मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया.
गजानन अवतार— एक बार धनराज कुबेर भगवान शिव-पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचा. वहां पार्वती को देख कुबेर के मन में काम प्रधान लोभ जागा. उसी लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ.
वह शुक्राचार्य की शरण में गया और उसने शुक्राचार्य के आदेश पर शिव की उपासना शुरू की. शिव लोभासुर से प्रसन्न हो गए. उन्होंने उसे निर्भय होने का वरदान दिया. इसके बाद लोभासुर ने सारे लोकों पर कब्जा कर लिया और खुद शिव को भी उसके लिए कैलाश को त्यागना पड़ा.
तब देवगुरु ने सारे देवताओं को गणेश की उपासना करने की सलाह दी. गणेश ने गजानन रूप में दर्शन दिए और देवताओं को वरदान दिया कि मैं लोभासुर को पराजित करूंगा. गणेश ने लोभासुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा. शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली.
लंबोदर अवतार— समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धरा तो शिव उन पर काम मोहित हो गए. उनका शुक्र स्खलित हुआ, जिससे एक काले रंग के दैत्य की उत्पत्ति हुई. इस दैत्य का नाम क्रोधासुर था. क्रोधासुर ने सूर्य की उपासना करके उनसे ब्रह्मांड विजय का वरदान ले लिया.
क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गए. वह युद्ध करने निकल पड़ा. तब गणपति ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया. क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता. क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया.
वक्रतुंड अवतार – राक्षस मत्सरासुर का नाश करने के लिए बप्पा ने वक्रतुंड_अवतार लिया था. शिव भक्त मत्सरासुर ने शिव की उपासना करके वरदान प्राप्त किया लिया था कि उसे किसी से भय नहीं रहेगा.
देवगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. उसके पुत्र सुंदरप्रिय और विषयप्रिय भी बहुत अत्याचारी थे. सारे देवता शिव की शरण में पहुंच गए. शिव जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे गणेश का आह्वान करें, गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर आएंगे.
देवताओं ने आराधना की और गणपति ने वक्रतुंड अवतार लिया. वक्रतुंड भगवान ने मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया.
विकट अवतार— भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया. उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कामासुर. कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया.
इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए. तब सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया. भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया. विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए. उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया.