ऐसे कैसे पढ़ेगा और बढ़ेगा भारत

गजोली के जर्जर रास्ते

उत्तरकाशी। पूर्ण साक्षरता के लिए भारत अगर चाहता है कि देश का हर बच्चा खूब पढ़ें, खूब लिखे तो सरकार को बच्चो के लिए हर वह चीज मुहैया करानी चाहिए जिसका असर बच्चों के भविष्य के उज्जवल से जुड़ा हो। ऐसा नहीं है कि सरकार बच्चों के लिए कुछ नहीं कर रही मगर उत्तरकाशी में पढ़ने के प्रति बच्चों की ललक इस कदर है कि वह अपनी जान की बाजी लगाकर स्कूल जा रहे हैं और सबको शिक्षा का नारा देने वाली सरकारें इनके स्कूल तक के लिए सुरक्षित रास्ता तक तैयार नहीं कर पा रही हैं।

अगर इस अवस्था में कोई हादसे का शिकार होता है तो इसका कौन जिम्मेदार होगा कौन जवाबदेही करेगा। गजोली में  अत्यधिक संवेदनशील रास्ते हैं जिसे होकर स्कूली छात्र-छात्राएं रोज़ भंकोली में अवस्थित दुर्गम विद्यालय (राजकीय इंटर कॉलेज भंकोली) पहुंचते हैं।

इन खतरनाक रास्ते में सिर्फ अस्थाई पुल के गिरने का खतरा ही नहीं बल्कि बच्चों को कई जगह रास्तों में टूटे वृक्षों के ऊपर से होकर भी चलना पड़ता है। जो खतरे से बिल्कुल खाली नही है।

बारिश में इन रास्तों से गुजरने वालों का छाता काटों में फस कर फट जाता है और नीचे पैरों पर कई जोंक चिपक जाती हैं जो खून पी लेती है। रास्ते में कहीं कोई ऐसी जगह मौजूद नहीं है कि जहां बारिश से बचने के लिए शरण ली जा सके।

इन रास्तों पर चलते वक्त चेहरों व शरीर को कीड़े मकौड़े छूते हैं। जिसके बाद आदमी खुजाने के सिवा कोई काम नहीं कर सकता। इसके अलावा कहीं दलदल है तो कहीं पत्थर गिरने का डर, तो कहीं फिसलने का भी भय है जो कि बेहद डिरौना है। रास्ते में भालू जैसे जानवरों का भी टकराव हो जाने का खतरा हमेशा बना रहता है।

यह ऐसी दिक्क्तें और डर हैं जिनसे स्कूली बच्चेे रोज झेलते हुए अपने स्कूल पहुंचत पाते हैं। ताकि वह पढ़ लिख कर कामयाब बन सकें। लेकिन सरकार के बीच जो लोग इसकी ज़िम्मेदारी लेके चुप्पी साध के बैठे हैं। उनको न तो यह तकलीफ़ें दिखती हैं और न ही खतरे मगर जब किसी तरह का  हादसा या दुर्घटना हो जाती है तब मीडिया सवालों की बौछार के सामने वह अपने को बेहद भावुक दिखाने लगते हैं। उसके बाद वह घोषणाओं और बौठकों में सब भूल कर उसमें विलीन हो जाते हैं।

 

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