भारतीयों के लिए बड़ी मुसीबत बन रहे ‘इलेक्ट्रॉनिक उपकरण’, UN ने दी ये ख़ास हिदायत
संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र ने भारत में उचित सुरक्षा उपायों के बिना ई-वेस्ट के प्रसंस्करण के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण को होने वाले गंभीर खतरों के प्रति चेतावनी दी है।
इंटरनेशनल टेलीकॉम्युनिकेशन्स यूनियन और यूएन यूनिवर्सिटी द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, “भारत में अनियमित क्षेत्र द्वारा ई-वेस्ट के प्रसंस्करण के कारण भारत में स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ रहा है।”
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रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दस लाख से भी ज्यादा गरीब लोग मैनुअल रीसाइक्लिंग के कामों में लिप्त हैं। इनमें से अधिकांश बेहद कम पढ़े लिखे हैं और इसलिए इनसे जुड़े खतरों से अनजान हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, ये खतरे ई-वेस्ट को खुले में जलाने या डंपिंग साइट्स पर फेंकने जैसे अनुचित और असुरक्षित निपटान के तरीकों के कारण पैदा होते हैं।
रिपोर्ट ‘ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2017’ के अनुसार, भारत में पिछले साल 19.5 लाख टन ई-वेस्ट पैदा हुआ। प्रति व्यक्ति के लिहाज से यह करीब 1.5 किलो है। साथ ही भारत में विकसित देशों से भी ई-वेस्ट का आयात किया जाता है।
पिछले साल दुनियाभर में 4.47 करोड़ टन यानी प्रति व्यक्ति 6.1 किलोग्राम ई-वेस्ट पैदा हुआ था। यह हर भारतीय द्वारा उत्पन्न ई-वेस्ट की तुलना में चार गुणा अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, कुल वैश्विक ई-वेस्ट में से केवल 89 लाख टन को ही रीसाईकिल किया गया।
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रिपोर्ट के अनुसार, प्रमुख भारतीय शहरों में एक औपचारिक ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग सेक्टर विकसित किया जा रहा है और देश के नियमों के तहत उत्पादकों पर अपने उत्पादों से पैदा होने वाले कचरे के निपटान की जिम्मेदारी डाली गई है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सस्ते सेल फोन और अन्य उपकरणों के उपलब्ध होने के कारण यह समस्या और गंभीर हो सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार, “इसका अर्थ यह है कि और अधिक लोग नए उपकरणों को खरीदने में सक्षम होंगे और इसके चलते और अधिक उपकरणों को फेंका जाएगा।”
रिपोर्ट में ई-वेस्ट के सुरक्षित निपटान और उसकी रीसाइक्लिंग के लिए प्रणालियां विकसित करने की जरूरत पर बल दिया गया है।
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