हर साल के कार्तिक अमावस्या को मनाई जाती है दिवाली, जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त

हर साल कार्तिक माह के अमावस्या के दिन दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है, ऐसी मान्यता है कि, कार्तिक माह के दिन भगवान राम 14 साल का वनवास पूरा करने के साथ… रावण का वध करके वापस अयोध्या लौटे थे। इसी खुशी में नगर वासियों ने उनका स्वागत दीए जलाकर और जश्न मनाकर किया था… उसी समय से हर साल इस दिन दिवाली का पर्व मनाया जाता है।

जानिए क्यों मनाई जाती है दीपावली

धार्मिक मान्यता अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमीं के दिन भगवान राम रावण का वध किया था… जिसके बाद भगवान राम माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे… जहां लंका से अयोध्या आते वक्त उन्हें 20 दिन का समय लगा था… और जिस दिन वे अयोध्या लौटे थें उस दिन उनका 14 वर्ष का वनवास समाप्त हो गया था… जिसके बाद भगवान राम के अयोध्या वापसी की खुशी में लोगों ने दीपोत्सव करके जश्न मनाया था.. इसलिए हर दशहरे के 20 दिन बाद यानि कार्तिक माह के अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है…

दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश पूजन विधि

दिवाली पर शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी-गणेश की पूजा विधि पूर्वक की जाती है… पहले कलश को तिलक लगाकर पूजा शुरू करें… इसके बाद अपने हाथ में फूल और चावल लेकर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का ध्यान करें… ध्यान के बाद भगवान श्रीगणेश और मां लक्ष्मी की प्रतिमा पर फूल और अक्षत अर्पण करें… फिर दोनों प्रतिमाओं को चौकी से उठाकर एक थाली में रखें और  दूध, दही, शहद, तुलसी और गंगाजल के मिश्रण से स्नान कराएं…इसके बाद स्वच्छ जल से स्नान कराकर वापस चौकी पर विराजित कर दें… स्नान कराने के उपरांत लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा को टीका लगाएं… और माता लक्ष्मी और गणेश जी को हार पहनाएं… इसके बाद लक्ष्मी गणेश जी के सामने बताशे, मिठाइयां फल, पैसे और सोने के आभूषण रखें… फिर पूरा परिवार मिलकर गणेश जी और लक्ष्मी माता की कथा सुनें और फिर मां लक्ष्मी की आरती उतारें…

दीपावली की पौराणिक कथाएं…

1- सतयुग की दीपावली- सबसे पहले दीवाली सतयुग में मनाई गई… कहा जाता है कि, जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो, इस महा अभियान से ही ऐरावत, चंद्रमा, उच्चैश्रवा, परिजात, वारूणी, रंभा सहित 14 रत्नों के साथ हलाहल विष भी निकला… और अमृत घट लिए धन्वंतरि भी प्रकट हुए… इसी से तो स्वास्थ्य के आदिदेव धन्वंतरि की जयंती से दीपोत्सव का महापर्व आंरभ होता है… इसी के बाद महामंथन से देवी महालक्ष्मी जन्मी और सारे देवताओं ने उनके स्वागत में पहली दीपावली मनाई…

2- त्रेतायुग की दीपावली- त्रेतायुग भगवान श्री राम के नाम से अधिक पहचाना जाता है… और महाबलशानी राक्षसेन्द्र रावण को पराजित कर 14 साल वनवास में बिताकर राम के अयोध्या आगमन पर सारी नगरी दीपमालिकाओं से सजाई गई और यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रातीक दीप-पर्व बन गया…

3- द्वापर युग की दीपावली- द्वापर युग श्रीकृष्ण का लीलायुग रहा और दीपावली में दों महत्वपूर्ण आयाम जुड़ गए… पहली घटना कृष्ण के बचपन की है…इंद्र पूजा का विरोध कर गोवर्धन पूजा का क्रांतिकारी निर्णय क्रियाविंत कर श्रीकृष्ण ने स्थानीय प्राकृतिक संपदा के प्रति सामाजिक चेतना का शंखनाद किया और गोवर्धन पूजा के रूप में अन्नकूट की परंपरा बनी… वैसे भी कृष्ण-बलराम कृषि के देवता है… उनकी चलाई गई अन्नकूट परंपरा आज भी दीपावली उत्सव का अंग है…और यह पर्व प्राय: दीपावली के दूसरे दिन प्रतिप्रदा को मनाया जाता है…

4- कलियुग की दीपावली- वर्तमान कलियुग दीपावाली को स्वामी रामतीर्थ और स्वामी दयानंद के निर्वाण के साथ भी जोड़ता है… भारतीय ज्ञान और मनीषा के दैदीप्यमान अमरदीपों के रूप में स्मरण

कर इनके पहले त्रिशलानंदन महावीर ने भी तो अपनी आत्मज्योति के परम ज्योति से महामिलन के लिए इसी पर्व को चुना था…जिनकी दिव्य आभा आज भी संसार को प्रेम, आहिंसा और संयम के अनोखेप प्रतिमान के रूप में आलोकित किए है…

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