अंधकार में बच्चों का भविष्य, 4 शिक्षकों के सहारे चल रहा इंटर कॉलेज

रिपोर्ट- कुलदीप राणा

रूद्रप्रयाग। सरकारी शिक्षा व्यवस्था को ढर्रे पर लाने के सरकार लाख दावें क्यों न करें लेकिन सरकारी विद्यालयों की बदहाल स्थिति सरकार के दावों की कलई खोल रही है। इसके उदाहरण प्रदेश भर में तुम्हें आसानी से मिल जायेंगे लेकिन हम जिक्र रुद्रप्रयाग के चोपता स्थिति तुंगेश्वर राजकीय इण्टर काॅलेज की  कर रहे हैं जहाँ शिक्षकों के अभाव में छात्रों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है।

स्कूल

प्रदेश में चाहे कांग्रेस की सरकार हो या फिर बीजेपी की, ये दोनों ही सरकारें सरकारी शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के दावे करती नहीं थकती हैं मगर दोनों ही सरकारें शिक्षा व्यवस्था को ढर्रें पर लाने में फिसड्डी साबित हुई हैं। सरकारों की नाकामी के चलते अनेकों विद्यालय बदहाल नजर आ रहे है।

तुंगेश्वर राजकीय इण्टर काॅलेज चोपता इसका जीता जागता उदाहरण है। यहां छात्र संख्या तो पर्याप्त है किन्तु महत्वपूर्ण विषयों के अध्यापक नहीं हैं। जिस कारण छात्रों का पाठन-पठन प्रभावित होता जा रहा है। 6 से 12 तक की कक्षायें इस विद्यालय में संचालित की जाती हैं लेकिन माध्यमिक शिक्षा में स्वीकृत 11 पदों के सापेक्ष केवल 4 अध्यापकों की तैनाती है।

अंग्रेजी, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, हिन्दी, कला और व्यावसायिक शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषयों के पद यहां रिक्त हैं। जबकि इण्टर मीडिएट में 9 पदों के सापेक्ष 7 पदों पर तो तैनाती है लेकिन अति महत्वपूर्ण विषय कमेस्ट्री और बायलाॅजी विषय जैसे विषयों के पद रिक्त हैं। जबकि यहां प्रधानाचार्य का पद भी रिक्त चल रहा है। ऐसे में आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि छात्र यहां कैसे अध्ययन कर रहे होंगे। जबकि इस विद्यालय में छात्र संख्या 552 है। जो अन्य विषयों के अध्यापक यहां तैनात हैं वहीं सबकुछ पढ़ाने को विवश हैं।

चोपता इण्टर काॅलेज के प्रति सरकार के इस उदासीन रवैये से छात्रों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ हैं। छात्र सालों से यहां अध्यापकों की मांग कर रहे हैं लेकिन नौनिहालों की सुने भी तो कौन? क्षेत्रीय छुटभैया नेता आकर आश्वासन जरूर दे जाते हैं लेकिन स्थिति तब भी नही सुधरती। वहीं क्षेत्रीय जनता भी लगातार सरकार से यहां अध्यापकों की तैनाती की मांग करती आ रही है लेकिन कोई सुनने वाला ही नहीं है।

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उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के मूल में शिक्षा जैसे ज्वलन्त सवाल को भाजपा कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों ने हाशिए पर छोड़ दिया है। यहां का नौनिहाल आज भी भी बेहतर शिक्षा के लिए पलायन करने के लिए विवश है तो यह सरकारों की घोर अकर्मण्यता ही हम इसे कहेंगे। एक ओर सरकार पलायन रोकने के लिए पलायन आयोग का गठन कर उस पर लाखों करोड़ों रूपये खर्च कर रही हैं।

वहीं दूसरी तरफ शिक्षा स्वास्थ सड़क बिजली पानी जैसे बुनियादी मसलों को हल करने में नाकाम साबित हो रही हे तो इसे सरकार को इस प्रदेश के साथ सौतेला व्यावहार और दोगलापन ही कह सकते हैं।

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