चार सालों में अस्थमा में हुई 43% की बढ़ोत्तरी, इन्हेलेशन थेरेपी का ले सहारा

अस्थमालखनऊ। ठंड के मौसम में अस्थमा के अटैक होने का खतरा बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में पिछले चार साल में अस्थमा की दवाइयों की बिक्री 43% तक बढ़ गई है।

पिछले भी मरीजों की संख्या 15% तक बढ़ गई। विशेषज्ञों के अनुसार ठंड में सूखी हवा व वातावरण में वायरस की बढ़ोत्तरी से अस्थमा की समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है।

ठंड के मौसम में सांस की नलियों में सूजन के कारण सांस की नलियां बहुत ज्यादा सिकुड़ जाती हैं, जिससे बलगम जैसा पदार्थ जमा होने लगता है। यह नलियों को सांस लेने में प्रभावित करता है। इससे सांस लेने में दिक्कत होने लगती है।

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रोग से नजात पाने के लिए ओरल दवाओं के मुकाबले इन्हेलेशन थेरेपी ज्यादा असरकारी है। इस थेरेपी में इन्हेलर पंप में मौजूद कोरटिकोस्टेरॉयड सांस की नलियों में जाता है। सांस की नलियों की सूजन को कम करने के लिए 25 से 100 माइक्रोग्राम कोरटिकोस्टेरॉयड की ही जरूरत होती है, लेकिन ओरल दवाओं के जरिए 10 हजार माइक्रोग्राम शरीर में चली जाती है।

अस्थमा रोगी टैबलेट के माध्यम से लक्षणों को कम करने के लिए 200 गुना ज्यादा दवा की मात्रा लेता है। ये दवाएं पहले रक्त में घुल कर फेफड़े तक पहुंचती हैं, लेकिन इन्हेलेशन थेरेपी में कोरटिकोस्टेरॉयड सीधे फेफड़ों में पहुंचता है, इसलिए लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए स्टेरॉयड की आवश्यक मात्रा इन्हेलेशन थेरेपी से मिलती है। ऐसे तरीकों से सर्दी में अस्थमा नियंत्रित हो सकता है।

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ओमेगा-3 फैटी एसिड साल्मन, ट्यूना, ट्राउट जैसी मछलियों में एवं मेवों व अलसी में पाया जाता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड केवल हमारे फेफड़ों के लिए भी लाभदायक है। यह सांस की तकलीफ एवं घरघराहट के लक्षणों से निजात दिलाता है।

पालक, ब्रोकोली, चुकंदर, शतावरी, मसूर की दाल में फोलेट होता है। हमारा शरीर फोलेट को फोलिक एसिड में तबदील करता है। फोलेट फेफड़ों से कैंसर पैदा करने वाले तत्वों को हटाता है।

संतरे, नींबू, टमाटर, कीवी, स्ट्रॉबेरी, अंगूर, अनानास व आम में भरपूर विटामिन सी होता है, सांस लेते वक्त शरीर को ऑक्सीजन देने और फेफड़ों से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए मदद करते हैं।

लहसुन में मौजूद एल्लिसिन तत्व होता है जो फेफड़ों से मुक्त कणों को दूर करने में मदद करते हैं। लहसुन संक्रमण से लड़ता है, फेफड़ों की सूजन कम करता है।

लहसुन में मौजूद एल्लिसिन तत्व होता है जो फेफड़ों से मुक्त कणों को दूर करने में मदद करते हैं। लहसुन संक्रमण से लड़ता है, फेफड़ों की सूजन कम करता है।

ब्लूबेरी, रास्पबेरी व ब्लैकबेरी में फ्लावोनॉयड, फैरोटीनॉयड व लुतिन, जीजांतिन नामक के एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये कैंसर से बचाने के लिए फेफड़ों से कार्सिनोजन को हटाते हैं।

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