सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने की तैयारी में जुटा वित्त मंत्रालय एक अलग तरीके के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। इसके तहत ‘मोटा’ वेतन पाने वाले कर्मचारियों-अधिकारियों को वेतन बढ़ोतरी का आधा हिस्सा बैंक कैपिटलाइजेशन बॉन्ड्स में निवेश करना होगा। दो साल तक निवेश जरूरी होगा और यह पैसा 11 साल बाद आपको मिलेगा। बॉन्ड की रकम का प्रयोग बैंकों को पूंजी मुहैया कराने में होगा। इस तरह सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा।
एक प्रस्ताव एेसा भी
एक प्रस्ताव है कि एरियर का आधा हिस्सा निवेश करना होगा। देश में 50 लाख केंद्रीय कर्मचारी हैं। इन्हें मान लें कि 2 लाख रुपए भी एरियर मिलता है और ये आधा निवेश करते हैं तो सरकार के पास 5000 करोड़ आ जाएंगे।
20,200 मासिक तनख्वाह तक छूट
5200 से 20,200 रु. वेतन पाने वाले कर्मचारी व पेंशनभोगियों को योजना में शामिल होने या न होने की छूट होगी। इससे ज्यादा वेतन पाने वाले कर्मचारियों को बढ़ोतरी का 50 प्रतिशत बैंक री-कैपिटलाइजेशन बॉन्ड्स में करना होगा निवेश।
निवेश से प्राप्त आय पर आयकर नहीं
बैंक 5.1त्न लाभांश देंगे और उस पर लाभांश वितरण टैक्स न लेने का प्रस्ताव। फंड कर्मचारियों को 5त्न ब्याज देगा व एडमिनिस्ट्रेटिव चार्ज के रूप में 0.1त्न अपने पास रख लेगा। ब्याज की राशि भी कर्मचारियों के लिए टैक्स फ्री होगी।
ब्याज होगा टैक्स फ्री
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि बैंकों को यह रकम एक स्पेशल बैंक कैपिटलाइजेशन फंड के जरिए दी जाएगी, जो बैंकों की ओर से जारी परपेचुअल नॉन-रिडीमेबल प्रिफरेंस शेयरों में निवेश करेगा। सरकार 8, 9, 10 और 11 वर्षों बाद कर्मचारियों को रकम का भुगतान करेगी।
सरकारी खजाने पर पड़ेगा बोझ
असल में सातवां वेतन आयोग लागू होने से सरकारी खजाने पर काफी बोझ पड़ेगा। 1 जनवरी 2016 से इसे लागू करने पर सरकार को 40 से 50 हजार करोड़ रुपए सलाना अतिरिक्त बोझ झेलना पड़ेगा। वित्त मंत्रालय के अनुसार सरकारी बैंकों को अगले चार वित्त वर्षों में 1.8 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त पूंजी चाहिए। इसमें से सरकार 70,000 करोड़ रुपये देगी। इस बजट में 25,000 करोड़ का प्रावधान है। प्रस्ताव के मुताबिक, बॉन्ड्स मेच्योर होने पर ही पेमेंट की नौबत आएगी, जिससे सरकार पर मौजूदा वित्त वर्ष में केवल ब्याज भुगतान की जिम्मेदारी बनेगी।